Sunday, May 10, 2009

अलबेदार (क़ुरआन का सच)



मुसलमानों को अँधेरे में रखने वाले इस्लामी विद्वान, मुस्लिम बुद्धि जीवी और कौमी रहनुमा, समय आ गया है कि अब जवाब दें- - -




कि लाखों, करोरों, अरबों बल्कि उस से भी कहीं अधिक बरसों से इस ब्रह्मांड का रचना कार अल्लाह क्या चौदह सौ साल पहले केवल तेईस साल चार महीने (मोहम्मद का पैगम्बरी काल) के लिए अरबी जुबान में बोला था? वह भी मुहम्मद से सीधे नहीं, किसी तथा कथित दूत के माध्यम से, वह भी बाआवाज़ बुलंद नहीं काना-फूसी कर के ? जनता कहती रही कि जिब्रील आते हैं तो सब को दिखाई क्यूँ नहीं पड़ते? जो कि उसकी उचित मांग थी और मोहम्मद बहाने बनाते रहे। क्या उसके बाद मुहम्मदी अल्लाह को साँप सूँघ गया कि स्वयम्भू अल्लाह के रसूल की मौत के बाद उसकी बोलती बंद हो गई और जिब्रील अलैहिस्सलाम मृत्यु लोक को सिधार गए ? उस महान रचना कार के सारे काम तो बदस्तूर चल रहे हैं, मगर झूठे अल्लाह और उसके स्वयम्भू रसूल के छल में आ जाने वाले लोगों के काम चौदह सौ सालों से रुके हुए हैं, मुस्लमान वहीँ है जहाँ सदियों पहले था, उसके हम रकाब यहूदी, ईसाई और दीगर कौमें आज हम मुसलमानों को सदियों पीछे अतीत के अंधेरों में छोड़ कर प्रकाश मय संसार में बढ़ गए हैं. हम मोहम्मद की गढ़ी हुई जन्नत के मिथ्य में ही नमाजों के लिए वजू, रुकू और सजदे में विपत्ति ग्रस्त है. मुहम्मदी अल्लाह उन के बाद क्यूँ मुसलमानों में किसी से वार्तालाप नहीं कर रहा है? जो वार्ता उसके नाम से की गई है उस में कितना दम है? ये सवाल तो आगे आएगा जिसका वाजिब उत्तर इन बदमआश आलिमो को देना होगा....
क़ुरआन का पोस्ट मार्टम खुली आँख से देखें "हर्फ़ ए ग़लत" का सिलसिला जारी हो गया है. आप जागें, मुस्लिम से मोमिन हो जाएँ और ईमान की बात करें। अगर ज़मीर रखते हैं तो सदाक़त अर्थात सत्य को ज़रूर समझेंगे और अगर इसलाम की कूढ़ मग्ज़ी ही ज़ेह्न में समाई हुई है तो जाने दीजिए अपनी नस्लों को तालिबानी जहन्नम में।

'मोमिन'



सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा (तीसरी किस्त)



" क्या तुम लोग इस का इरादा रखते हो कि ऐसे लोगों को हिदायत करो जिस को अल्लाह ने गुमराही में डाल रक्खा है और जिस को अल्लाह ताला गुमराही में डाल दे उसके लिए कोई सबील (उपाय) नहीं."
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (84)

गोया मुहम्मदी अल्लाह शैतानी काम भी करता है, अपने बन्दों को गुमराह करता है. मुहम्माद परले दर्जे के उम्मी(निरक्षर) ही नहीं अपने अल्लाह के नादाँ दोस्त भी हैं, जो तारीफ में उसको शैतान तक दर्जा देते हैं। उनसे ज्यादा उनकी उम्मत(अनुयायी) जो उनकी बातों को मुहाविरा बना कर दोहराती हो कि " अल्लाह जिसको गुमराह करे, उसको कौन राह पर ला सकता है"?

" वह इस तमन्ना में हैं कि जैसे वोह काफ़िर हैं, वैसे तुम भी काफ़िर बन जाओ, जिस से तुम और वोह सब एक तरह के हो जाओ। सो इन में से किसी को दोस्त मत बनाना, जब तक कि अल्लाह की राह में हिजरत (स्वदेश त्याग) न करें, और अगर वोह रू गरदनी (इंकार) करें तो उन को पकडो और क़त्ल कर दो और न किसी को अपना दोस्त बनाओ न मददगार"

सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (89)

कितना जालिम प्रकृत था अल्लाह का वह स्वयंभु रसूल? बड़े शर्म की बात है कि आज हम उसकी अनुयायी बने बैठे हैं। सोचें कि एक शख्स रोज़ी कि तलाश में घर से निकला है, उसके छोटे छोटे बाल बच्चे और बूढे माँ बाप उसके हाथ में लटकती रिजक (भोज्य सामग्री) की पोटली का इन्तेज़ार कर रहे हैं और इसको मुहम्मद के दीवाने जहाँ पाते हैं उसे क़त्ल कर देते हैं? एक आम और निश पक्ष की ज़िन्दगी किस क़दर मुहाल कर दिया था मुहम्मद की दीवानगी ने। बेशर्म और ज़मीर फरोश ओलिमा उल्टी कलमें घिस घिस कर उस मुज्रिमे इंसानियत को मुह्सिने इंसानियत (मानवता- मित्र) बनाए हुए हैं। यह कुरान उसके बेरहमाना कारगुजारियों का गवाह है और शैतान ओलिमा इसे मुसलमानों को उल्टा पढा रहे हैं. हो सकता है कुछ धर्म इंसानों को आपस में प्यार मुहब्बत से रहना सिखलाते हों मगर उसमें इसलाम हरगिज़ नहीं हो सकता. मुहम्मद तो उन लोगों को भी क़त्ल कर देने का हुक्म देते हैं जो अपने मुस्लमान और काफिर दोनों रिश्तेदारों को निभाना चाहे. आज तमाम दुन्या के हर मुल्क और हर क़ौम, यहाँ तक की मुस्लमान भी इस्लामी दहशत गर्दी से परेशान हैं. इंसानियत की तालीम से अनजान, कुरानी शिक्षा से भरपूर अल्कएदा और तालिबानी संस्थाएं के नव जवान अल्लाह की राह में तमाम मानव मूल्यों पैरों तले रौंद सकते हैं, इंसान के रचना कालिक उत्थान को तह ओ बाला कर सकते हैं। सदियों से फली फूली सभ्यता को कुचल सकते हैं. हजारों सालों प्रयत्नों से इन्सान ने जो तरक्की की मीनार चुनी है, उसे वोह पल झपकते मिस्मार कर सकते हैं। इनके लिए इस ज़मीन पर खोने के लिए कुछ भी नहीं है एक कूडे दान सर के सिवा, जिसके बदले में ऊपर मुंगेरी लाल का स्वर्ग है। इनके लिए यहाँ पाने के लिए भी कुछ नहीं है सिवाए इस के की हर सर इनके हानि कारक इसलाम को कुबूल करके और इनके अल्लाह और उसके रसूल मुहम्मद के आगे सजदे में नमाज़ के वास्ते झुक जाए. इसके बदले में भी इनको ऊपर जन्नतुल फिरदौस धरी हुई है, पुर अमन चमन में तिनके तिनके से सिरजे हुए आशियाने को इन का तूफ़ान पल भर में सर्वनाश कर देता है। क़ुरआन कहता है - - -

" बाजे ऐसे भी तुम को ज़रूर मिलेगे जो चाहते हैं तुम से भी बे ख़तर होकर रहें और अपने क़ौम से भी बे ख़तर होकर रहें. जब इन को कभी शरारत की तरफ मुतवज्जो किया जाता है तो इस में गिर जात्ते हैं यह लोग अगर तुम से कनारा कश न हों और न तुम से सलामत रवि रखें और न अपने हाथ को रोकें तो ऐसे लोगों को पकडो और क़त्ल कर दो जहाँ पाओ ।"उरः निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (91)

मुहम्मद ये उन लोगों को क़त्ल कर देने का हुक्म दे रहे हैं जो आज सैकुलर जाने जाते हैं और मुसलमानों के लिए पनाहे अमां बने हुए हैं। आज़ादी के पहले यह भी मुसलमानों के लिए काफ़िर ओ मुशरिक जैसे ही थे, मगर इब्नुल वक़्त (समय जन्मित कपूत) ओलिमा आज इनकी तारीफ़ में लगे हुए हैं। वैसे भी नज़रियात बदल जाते हैं, मज़हब बदल जाते हैं मगर खून के रिश्ते कभी नहीं बदलते. मुहम्मदी इसलाम इन्सान से अलौकिक काम कराता है, इसी लिए अंततः सर्व निन्दित है। मैं एक बार फिर आप का ध्यान आकर्षित कराना चाहता हूँ कि इस ब्रह्माण्ड का निदेशक, वोह महान शक्ति अगर कोई है भी तो क्या उसकी बातें ऐसी टुच्ची किस्म की हो सकती हैं जो क़ुरआन कहता है. किसी बस्ती के ना इंसाफ मुख्या की तरह, या कभी किसी कस्बे के बे ईमान बनिए जैसा. कभी गाँव के लाल बुझक्कड़ की तरह. अल्लाह भी कहीं ज़नानो कि तरह बैठ कर पुत्राओ-भत्राओ करता है? कुन फ़यकून (हो जा ,होगया की कुदरत रखने वाला अल्लाह) की ताक़त रखता है तो पंचायती बातें क्यूँ? आखिर मुसलमानों को समझ क्यों नहीं आती, उस से पहले उसे हिम्मत क्यों नहीं आती?

" और किसी मोमिन को शान नहीं की किसी मोमिन को क़त्ल करे और किसी मोमिन को गलती से क़त्ल कर दे तो उसके ऊपर एक मुस्लमान गुलाम या लौंडी को आज़ाद करना है और खून बहा है, जो उसके खानदान के हवाले से दीजिए, मगर ये की वोह लोग मुआफ कर दें। (मोमिन से मुहम्मद का मतलब है मुसलिम)"

सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (92)

"और जो किसी मुस्लमान का क़सदन क़त्ल कर डाले तो इस की सजा जहन्नम है जो हमेशा हमेशा को इस में रहना।"

सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा आयात (93)

बड़ी ताकीद है कि मोमिन मोमिन को क़त्ल न करे, इस्लामी तारीख जंगों से भारी पड़ी हैं और ज़्यादा तर जंगें आपस में मुसलमनो की इस्लामी मुल्को और हुक्मरानों के दरमियाँ होती हैं। आज ईरान, ईराक, अफगानिस्तान, और पाकिस्तान में खाना जंगी मुसमानों की मुसलमानों के साथ होती है। बेनजीर और मुजीबुर रहमान जैसा सिलसिला रुकने का नहीं, मज़े की बात कि इनको मारने वाले शहीद और जन्नत रसीदा होते हैं, मरने वाले चाहे भले न होते हों। मुस्लमान आपस में एक दूसरे से हमदर्दी रखते हों या नहीं मगर इस जज्बे का नाजायज़ फायदा उठा कर एक दूसरे को चूना ज़रूर लगते हैं.

" अल्लाह ताला ने इन लोगों का दर्जा बहुत ज़्यादा बनाया है जो अपने मालों और जानों से जेहाद करते हैं, बनिसबत घर में बैठने वालों के, बड़ा बडा बदला दिया है, यानी बहुत से दर्जे जो अल्लाह ताला की तरफ़ से मिलेंगे."

सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (95)

मुहम्मद ने जेहाद का आगाज़ भर सोचा था, अंजाम नहीं, अंजाम तक पहुँचने के लिए उनके पास सम्राट अशोक जैसा दृष्टकोण ही नहीं था न ही होने वाले रिश्ते दार नौ शेरवाने आदिल का दिल था. उन्होंने अपनी विरासत में क़ुरआन की ज़हरीली आयतें छोडीं, तेज़ तर तलवार और माले गनीमत के धनी खुलफा, उमरा, सुलतान, और खुदा वंद बादशाह, साथ साथ जेहनी गुलाम जाहिल उम्मत की भीड़।

" मुहम्मदी अल्लाह कहता है जब ऐसे लोगों की जान फ़रिश्ते कब्ज़ करते हैं जिन्हों ने खुद को गुनाह गारी में डाल रक्खा था तो वोह कहते हैं कि तुम किस काम में थे? वोह जवाब देते हैं कि हम ज़मीन पर महज़ आधीन थे। वोह कहते हैं कि क्या अल्लाह की ज़मीन विशाल न थी? कि तुम को तर्क वतन करके वहाँ चले जाना चाहिए था? सो इन का ठिकाना जहन्नम है।"

मात्र भूमि और स्वदेश प्रेम करने वाले कुरआनी आयातों पर गौर करें .
अल्लाह अपनी नमाजें किसी हालात में मुआफ नहीं करता, चाहे बीमारी ओ लाचारी हो या फिर मैदाने जंग। मैदान जंग में आधे लोग साफ बंद हो जाएँ और बाकी नमाज़ की सफ में खड़े हो जाएँ. नमाज़ और रोजा अल्लाह की बे रहम ज़मींदार की तरह माल गुजारी है. बहुत देर तक और बहुत दूर तक अल्लाह अपने घिसे पिटे कबाडी जुमलो की खोंचा फरोशी करता है, फिर आ जाता है अपनी मुर्ग की टांग पर- - -

"जो शख्स अल्लाह और उसके रसूल की पूरी आज्ञाकारी करेगा, अल्लाह ताला उसको ऐसी जन्नतों में दाखिल करेगा जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इन में रहेगे. यह बड़ी कामयाबी है."

सूरह निसाँअ पाँचवाँ पारा- आयात (96-122)

फिर एक बार कूढ़ मगजों के लिए मुहम्मदी अल्लाह कहता है - -

" और जो शख्स कोई नेक काम करेगा ख्वाह वोह मर्द हो कि औरत बशरते कि वोह मोमिन हो, सो ऐसे लोग जन्नत में दाखिल होंगे और इन पर ज़रा भी ज़ुल्म न होगा।"

सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (124)

अल्लाह न जालिम है न रहीम करोरों साल से दुन्या क़ायम है ईमान दारी के साथ उसकी कोई खबर नहीं है, अफवाह, कल्पना, और जज़्बात की बात बे बुन्याद होती हैं। खुद मुहम्मद ज़ालिम तबाअ थे और अपने हिसाब से उसका तसव्वुर करते हैं। आम मुसलमानों में जेहनी शऊर बेदार करने के लिए खास अहले होश और बुद्धि जीवियों को आगे आने की ज़रुरत है.

" यह तो कभी न हो सकेगा की सब बीवियों में बराबरी रखो, तुमरा कितना भी दिल चाहे."

सूरह निसाँअ 4 पाँचवाँ पारा- आयात (129)

यह कुरानी आयत है अपनी ही पहली आयात के मुकाबले में जिसमें अल्लाह कहता है दो दो तीन तीन चार चार बीवियां कर सकते हो मगर मसावी सुलूक और हुकूक की शर्त है, और अब अपनी बात काट रहा है, कुरानी कठमुल्ले मुहम्मदी अल्लाह की इस कमजोरी का फायदा यूँ उठाते है की अल्लाह ये भी तो कहता है।

" ऐ ईमान वालो! इंसाफ पर खूब कायम रहने वाले और अल्लाह के लिए गवाही देने वाले रहो."

सूरह निसाँअ 4 पाँचवाँ पारा- आयात (135)

मुसलमानों सोचो तुम्हारा अल्लाह इतना कमज़ोर की बन्दों की गवाही चाहता है? अगर तुम पीछे हटे तो वोह मुक़दमा हार जाएगा। उस झूठे और कमज़ोर अल्लाह को हार जाने दो। ताक़त वर जीती जागती क़ुदरत तुम्हारा इन्तेज़ार अपनी सदाक़त की बाहें फैलाए हुए कर रही है।

." जब एहकामे इलाही के साथ इस्तेह्ज़ा (मज़ाक) होता हुवा सुनो तो उन लोगों के पास मत बैठो - - - इस हालत में तुम भी उन जैसे हो जाओगे.

"सूरह निसाँअ 4 पाँचवाँ पारा- आयात (140)

मुहम्मद की उम्मियत में बाला की पुख्तगी थी, अपनी जेहालत पर ही उनका ईमान था जिसमें वह आज तक कामयाब हैं। जब तक जेहालत कायम रहेगी मुहम्मदी इसलाम कायम रहेगा. इस आयात में यही हिदायत है कि तालीमी रौशनी में इस्लामी जेहालत का मज़ाक बनेगा. मुसलमानों को हिदायत दी जाती है की उस में बैठो ही नहीं. वैसे भी मुल्लाजी के लिए दुम दबा कर भागने के सिवा कोई रास्ता नहीं रह जाता जब "ज़मीन नारंगी की तरह गोल और घूमती हुई दिखती है, रोटी की तरह चिपटी और कायम नहीं है." जैसी बात चलती है - - - एहकामे इलाही में ज़्यादा तर परिहास के सिवा है क्या? इस में एक से एक हिमाक़तें दरपेश आती हैं। इन के लिए जेहनी मैदान की बारीकियों में जेहद की जमा जेहाद के काबिल तो कहीं पर क़दम ज़माने की जगह मिलती नहीं आप की उम्मत को.अक्सर अहले रीश नमाज़ के बहाने खिसक लेते हैं जब देखते हैं कि इल्मी, अकली, या फितरी बहस होने लगी.




3 comments:

  1. चूँकि कुरान के हवाले से कह रहे हैं तो ठीक ही कह रहे होंगे। सच्चाई तो यही है कि खुले दिमाग से मुस्लिम मित्र चर्चा ही नहीं करना चाहते। इस्लाम पूर्व अरब के क्या हालात थे,कुरैश कबीले का पुराना इतिहास क्या था और मक्के में लात,मनात,अम्ब आदि की ३६० मूर्तियाँ थी तथा चाँद सितारे की वास्तिक कहानी क्या है-यदि इस पर भी थोड़ी रौशनी ड़ाल सकें तो वाक्फियत बढ़ेगी।

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  2. मेरा अनुमान है कि हम मुसलमानों को मुहम्‍मदी कहने वाला यह ज़रूर अहमदी होगा, क्‍योंकि 56 इस्‍लामिक देशों ने इन्‍हें इस्‍लाम से निकाल रखा है, इनके विचार कृष्‍ण जी के बारे में भी जानलो,
    पुस्‍तकः श्री कृष्‍ण जी और कल्कि अवतार
    http://www.alislam.org/hindi/
    http://www.alislam.org/hindi/Shri-Krishan-Ji-Aur-Kalki-Avatar.pdf

    इनके ब्‍लाग में झूठ देखोः
    " यह तो कभी न हो सकेगा की सब बीवियों में बराबरी रखो, तुमरा कितना भी दिल चाहे."----सूरह निसाँअ 4 पाँचवाँ पारा- आयात (129)
    कुरआन कि यह बातें इसने खुद घड ली हैं, जो सूरत और आयत नम्‍बर ये देरहे हैं वह यह हैः
    4:129 http://www.altafseer.com/
    और अगरचे तुम बहुतेरा चाहो (लेकिन) तुममें इतनी सकत (समर्थ हो) तो हरगिज़ नहीं है कि अपनी कई बीवियों में (पूरा पूरा) इन्साफ़ कर सको (मगर) ऐसा भी तो न करो कि (एक ही की तरफ़) हमातन माएल हो जाओ कि (दूसरी को अधड़ में) लटकी हुयी छोड़ दो और अगर बाहम मेल कर लो और (ज़्यादती से) बचे रहो तो ख़ुदा यक़ीनन बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

    जो सूरत इन्‍होंने तोड मरोड कर पेश की वह यह है
    4:3 http://www.altafseer.com/
    और अगर तुमको अन्देशा हो कि (निकाह करके) तुम यतीम लड़कियों (की रखरखाव) में इन्साफ न कर सकोगे तो और औरतों में अपनी मर्ज़ी के मवाफ़िक दो दो और तीन तीन और चार चार निकाह करो (फिर अगर तुम्हें इसका) अन्देशा हो कि (मुततइद) बीवियों में (भी) इन्साफ न कर सकोगे तो एक ही पर इक्तेफ़ा करो या जो (लोंडी) तुम्हारी ज़र ख़रीद हो (उसी पर क़नाअत करो) ये तदबीर बेइन्साफ़ी न करने की बहुत क़रीने क़यास है

    चार बीवियों और एक बीवी पर हमारा जवाब देखना चाहें (...1954 में ‘‘हिन्दू मैरिज एक्ट’’ लागू होने के पश्चात हिन्दुओं पर एक से अधिक पत्नी रखने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया....) तो ऐसे 19 सवालों के जवाब के लिये पढिये
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/03/non-muslims-muslims-answer.html

    इधर उधर की बातों में अपना समय बर्बाद कर रहे हो, इस्‍लाम को नीचा दिखाना चाहते हो तो, अल्‍लाह के चैलेंज का जवाब दो, मैंने हिन्‍दी जानने वालों के लिये 6 अल्‍लाह के चैलेंज तैयार किये हैं एक का भी उत्‍तर देदो 1400 सौ साल से इन्‍तजार है, तीन यहां प्रस्‍तुत हैं
    अल्‍लाह का चैलेंज पूरी मानव जाति को
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/1-7.html
    अल्लाह का चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता।
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/3-7.html
    अल्लाह का चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/4-7.html

    ऐसी पुस्‍तक पढो जो धर्मों के तुलनात्‍मक अध्‍यण में आपकी मदद करे, 80 में पहली कहानी एक अपाहिज औरत की इस्‍लाम कबूल करने फिर एक बहुत बडे डान को इस्‍लाम कबूल कराने की कहानी ही पढ कर दिल बाग बाग हो जायेगा, इस बात का उत्‍तर भी मिलेगा कि क्‍यूं महिलायें अधिक इस्‍लाम कबूल करती हैं
    विश्‍व की 80 नव मुस्लिम महिलाओं के इस्‍लाम क़बूल करने की ईमान अफरोज़ दास्‍तातें दास्तान 1,039 KB
    http://www.4shared.com/file/90291497/fe7ebb77/hindi-book-hemen-khuda-kese-milihindi.html

    हमारे पास आपके पढने के लिये एक किताब है
    आपकी अमानत - आपकी सेवा में
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/03/armughandotin.html

    आप भी कोई किताब मुझे पढवाना चाहते हों तो निसंकोच लिखें

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