Friday, May 1, 2009

संगे-असवद

बेदारियां -(९)

अलबेदार


संगे-असवद वह बे तराशा हुवा इस्लामी बुत है जिसने उम्मी अर्थात निरक्षर मुहम्मद को पैगम्बरी दिलाई. बुतों से उनको नफ़रत थी मगर असवद से उनकी आस्था ही नहीं जुडी हुई थी, बल्कि उस पत्थर से उन्हें स्नेह भी था. ये संगे असवद ही तो था जिसने मुहम्मद को मूसा और ईसा कि तरह बड़ा पैगम्बर बन्ने साहस प्रदान किया. असवद ने मुहम्मद को बड़े बड़े ख्वाब दिखलाए जो कि उनकी जिंदगी में ही पूरे हुए, दर परदा असवद की आस्था उनके दिल में बढती गई और वह दीवानगी में आ कर उसे चूमने लगे. इस से उनके सम कालीन प्रतिनिधि सहमति न रखते हुए भी मुहम्मद का अनुसरण करते थे. आज तमाम उम्मते मुस्लिमा (मुहम्मद के उपासक) मूर्ति पूजा से परहेज़ करती है मगर असवद को काबा जाकर मूर्ति पूजक की तरह ही बल्कि उससे भी बढ़ कर अस्वाद को चूमती है.
इसकी जड़ मक्के के उस वाक़िए में छुपी हुई है जब काबा कि एक दीवार गिर गई थी और दोबारा बनाई जा रही थी. मक्का के क़बीलों में इस बात पर तकरार हो गई थी कि इस में से गिरा संगे असवद दोबारा किस क़बीले का मुखिया स्थापित करेगा? गौर तलब है कि यह संगे असवद क्षितिज से गिरा हुवा शहाब साक़िब (उल्का पिंड) था. जो कि उसी समय से काबा की दीवार में खुदा कि भेजी हुई निशानी के तौर पर लगा हुवा था,जब वह आकाश से गिरा था. वहां तकरार में आम आदमियों में मुहम्मद भी मौजूद थे, तकरार इस बात पर खत्म हुई कि कल जो श्रद्धालु सब से पहले काबा में दाखिल होगा उसकी बात मान ली जाएगी. बस फिर क्या था, पैगम्बरी के अभिलाषी मुहम्मद पता नहीं रात के अँधेरे में ही किस वक़्त काबे में अपनी अभिलाषा को लेकर घुस आए. सुब्ह हुई, हज़रात वहां उदित पाए गए, न्याया धीश बन्ने का मौक़ा हाथ लगा. एक चादर मंगाई उस पर संगे असवद को अपने हाथों से उठा कर रखा और हर कबीले के मुखिया को बुलाया, सब से चादर पकड़ कर असवद को दीवार तक ले जाने कि बात कही, जब चादर असवद को लेकर दीवार तक पहुँच गई तो होशियार मोहम्मद ने आगे बढ़ कर पत्थर असवद को चादर से उठाया और दीवार में अपने हाथों से स्थापित कर दिया लोग किं कर्तव्य विमूढ़ रह गए. इस हाज़िर दिमागी पर मुहम्मद की अवाम में तो वाह वाही हुई मगर कबीलाई मुखियों ने अपने ख़ुद ठगा हुवा पाया. ठगा जाने का ख्याल तब और जोरों पर आया जब इसी शख्स ने एलाने पैगम्बरी करदी.
इस वाकिए के बाद पैदाइशी मूर्ति पूजक मुहम्मद ने जब मूर्ति पूजा के विरोध में अभियान चलाया तो अपनी मूर्ति पूजक प्रकृति को संगे असवद तक सीमित कर दिया। इस के एहसान मंद रहे, इसको चूमते रहे, इसका कर्ज़ अपनी उम्मत से भी बुत चुम्मी करा के चुकवा रहे हैं. मुहम्मद बुत परस्ती ही नहीं, अव्वल दर्जे के अंध विश्वासी भी थे . मकड़ जाल बिछाए हुए यह आलिमाने दीन समाज में जो त्रुटियां और व्यक्ति में जो कमजोरियां देखते हैं वैसा ही रसूली उपचार करते हैं.

"हर्फ़ ऐ ग़लत" का इंतज़ार कीजिए ।


मोमिन

नोट - - -मेरी तहरीर की सदाक़तों का फ़ायदा उठाइए और माकूल जवाब दीजिए जो फितरी सच हो. आप की धोंस-धमकी का किसी को कोई फायदा नहीं. मेरा लब ओ लहजा इन अय्यार ओलिमा के खिलाफ इस से भी सख्त होगा जो करोरो भोले भाले मुसलमानों को सदियों से गुमराह किए हुए हैं. मेरी जान की कीमत इस के लिए ? कुछ भी न होगी.

1 comment:

  1. इतने बड़े कदम उठाने के लिए , मुबारक बाद ! पर ध्यान रहे प्यार और दुलार से भी किसी की गलतिया बताई जा सकती है.

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