Saturday, May 16, 2009

हर्फ़े ग़लत (क़ुरआन और हदीस)


मुहम्मदी अल्लाह कहता है - - -
"जो व्यक्ति केवल मेरी सहमति के लिए और मुझ पर विश्वास जताने हेतु तथा मेरे दूत (मुहम्मद) के प्रमाणी करण के कारन मेरे रस्ते में जिहाद की उपलब्धियों के लिए निकलता है तो मेरे लिए निर्धारित है कि मैं उसको बदले में माल ए गनीमत (लूटे गए माल) से माला माल कर के वापस करूँ या जन्नत में दाखिल करूँ."मोहम्मद कहते"अगर मुझे मेरी उम्मत (सम्प्रदाय) का ख़ौफ न होता (कि मेरे बाद उनका पथ प्रदर्शन कौन करेगा) तो मैं मुजाहिदीन के किसी लश्कर के पीछे न रहता और यह पसंद करता कि मैं अल्लाह के राह में सम्लित होकर जीवित रहूँ, फिर शहीद हो जाऊं, फिर जीवित हो जाऊं, फिर शहीद हो जाऊं - - - "

(हदीस बुखारी ३४)
मदरसों में शिक्षा का श्री गणेश इन हदीसों (मुहम्मद कथानात्मकों) से होती है, इससे हिन्दू ही नहीं वरन आम मुस्लमान भी अनजान होता है। मुहम्मदी अल्लाह की सहमति मार्ग क्या है ? इसे हर मुसलमान को इस्लामदारी से नहीं, बल्कि ईमानदारी से सोचना चाहिए. मुहम्मदी अल्लाह मुसलमानों को अपने हिदू भाइयों के साथ जेहाद की रज़ा क्यूं रखता है? इसका उचित जवाब न मिलने तक समस्त तर्क अनुचित हैं जो इस्लाम को शांति का द्योतक सिद्ध करते हैं. मुसलमानों! सौ बार इस हदीस को पढो, अगर एक बार में ये तुम्हारे पैगम्बर तुम्हारी समझ में न आएं कि ये किस मिट्टी के बने हुए इन्सान थे? खुद को जंग से इस लिए बचा रहे हैं कि इन को अपनी उम्मत का ख़याल है, तो क्या उम्मत के लिए अल्लाह पर भरोसा नहीं या मौत का क्या एतबार ? सब मक्र की बातें हैं। मुहम्मद प्रारंभिक इस्लामी छ सात जंगों में शामिल रहे जिसे गिज्वा कहते हैं. हमेशा लश्कर के पीछे रहते जिसको स्वयं स्वीकारते है. तरकश से तीर निकाल निकाल कर जवानो को देते और कहते कि मार तुझ पर मेरे माँ बाप कुर्बान. जंगे ओहद में मिली शर्मनाक हार के बाद अंतिम पंक्ति में मुंह छिपाए खड़े थे, नियमानुसार जब अबू सुफ्यान ने तीन बार आवाज़ लगाईं थी कि अगर मुहम्मद जिंदा हों तो खुद को जंगी कैदी बनना मंज़ूर करें और सामने आएं । अल्लाह के झूठे रसूल, बन्दे के लिए भी झूठे मुजरिम बने। जान बचा कर अपनी उम्मत को अंधा बनाए हुए हैं



सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा



"मुनाफिक (कपटचारी) जब नमाज़ को खड़े होते हैं तो बहुत काहिली के साथ खड़े होते हैं, सिर्फ आदमियों को दिखाने के लिए और अल्लाह का ज़िक्र भी नहीं करते, लटके हैं ईमान और कुर्फ्र के बीच. न इधर के, न उधर के.. जिन को अल्लाह गुमराही में डाल दे, ऐसे व्यक्ति के लिए कोई उपचार न पाओ गे."सूरह निसाँअ पाँचवाँ पारा- आयात (144)
दोषी तो मुहम्मदी अल्लाह हुवा जो नमाजियों को गुमराह किए हुए है, शैतान की तरह और अकारण ही बन्दों के सर दोष रोपण कर रहा है कि वह कपटचारी और काहिल हैं।
"जो लोग कुफ्र करते हैं अल्लाह के साथ और उसके रसूल के साथ वोह चाहते हैं फर्क रखें अल्लाह और उसके रसूल के दरम्यान, और कहते हैं हम बअजों पर तो ईमान लाते हैं और बअजों के मुनकिर हैं और चाहते हैं बैन बैन राह तजवीज़ करें, ऐसे लोग यकीनन काफिर हैं."
सूरह निसाँअ छटवां पारा- (युहिब्बुल्लाह) आयात (१५१)

जनाब! नमाज़ एक ऐसी बला है जिसमें नियत बांधते ही जेहन में भटकाव आ जाता है, अल्लाह का नाम लेकर दुन्या दारी में। इसकी गवाही एक ईमानदार मुसलमान दे सकता है. खुद मुहम्मद को तमाम कुरानी और हदीसी खुराफात नमाजों में ही सूझती थीं.

" मदीने में अक्सरीयत जनता मुहम्मद को अन्दर से उस वक्त तक पसंद नहीं करती थी मगर चूँकि चारो तरफ इस्लामी हुकूमतें कायम हो चुकी थी और मदीने पर भी, इस लिए केंद्र विन्दु तो आवश्य बन चुके थे, फिर भी थे नापसंदीदा ही थे . कैसे बे शर्मी के साथ अल्लाह की तरह खुद को मनवा रहे हैं. आज उनका तरीका ही उनके चमचे आलिमान दीन अपनाए हुए हैं. मुसलमानों! बेदारी लाओ.*नूह, मूसा, ईसा जैसे मशहूर नबियों के सफ में शामिल करने के लिए मुहम्मद एहतेजाज(ptotest) करते हैं कि लोग उनको भी उनकी ही तरह क्यूँ तस्लीम नहीं करते. वोह उनको काफिर कहते हैं और उनका अल्लाह भी. मुहम्मद अपनी ज़िन्दगी में ही सोलह आना अपनी मनमानी देखना चाहते थे जो कि उमूमन ढोंगियों के मरने के बाद होता है. इन्हें कतई गवारा नहीं कि कोई इनकी राय में दख्ल अंदाज़ हो, अगर उनकी रसालत पर असर आती हो। लोगों को अपनी इन्फ्रादियत (व्यक्तित्व) भी अज़ीज़ होती है, इसलाम में निफ़ाक़ (फ़ुट) की खास वजह यही है। यह सिलसिला मुहम्मद के ज़माने से शुरू हुवा तो आज तक जारी है. इसी तरह उस वक़्त अल्लाह की हस्ती को तस्लीम करते हुए, मुहम्मद की ज़ात को एक मुक़ररर हद में रहने की बात पर हजरत बिफर जाते हैं और बमुश्किल तमाम बने हुए मुसलमानों को काफिर कहने लगते हैं."
" आप से अहले किताब यह दरख्वास्त करते हैं कि आप उनके पास एक खास नविश्ता (लिखी हुई) किताब आसमान से माँगा दें, सो उन्हों ने मूसा से इस से भी बड़ी दरख्वास्त की थी और कहा था की हम को अल्लाह ताला को खुल्लम खुल्ला दिखला दो. उनकी गुस्ताखी के सबब उन पर कड़क बिजली आ पड़ी. फिर उन्हों ने गोशाला तजवीज़ किया था, इस के बाद बहुत से दलायल उनके पास पहुँच चुके थे.फिर हम ने उसे दर गुज़र कर दिया था, और मूसा को हम ने बहुत बड़ा रोब दिया था."
सूरह निसाँअ छटवां पारा- आयात (153)
देखिए कि लोगो की जायज़ मांग पर अल्लाह के झूठे रसूल कैसे कैसे रंग बदलते हैं, जवाज़ में कहीं पर कोई मर्दानगी नज़र आती है? कोई ईमान दिखाई पड़ता है, सदाक़त की झलक नज़र आती है? उनकी इन्हीं अदाओं पर यह हिजड़े गाया करते हैं " मुस्तफ़ा जाने आलम पे लाखों सलाम।"" और हम ने उन लोगों से क़ौल क़रार लेने के वास्ते कोहे तूर को उठा कर उन के ऊपर मुअल्लक़ कर दिया था और हम ने उनको हुक्म दिया था कि दरवाज़े में आजिज़ी से दाखिल होना और हम ने उनको हुक्म दिया था कि योम हफ्ता के बारे में तजाउज़ न करना और हम ने उन से क़ौल ओ क़रार निहायत शदीद लिए. सो उनकी अहद शिकनी की वजह से और उनकी कुफ़्र की वजह से अहकाम इलाही के साथ और उनके क़त्ल करने की वजह से अम्बियाए नाहक और उन के इस मकूले की वजह से कि हमारे कुलूब महफूज़ बल्कि इन के कुफ़्र के सबब - - - "
सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (154-55)
ये हैं तौरेत के वाकेआती कुछ टुकड़े जो कि अनपढ़ मुहम्मद के कान में पडे हुए हैं उसे वे वोह मुसन्निफ़ के तौर पर वोह भी अल्लाह बन कर कुरआन तरतीब दे रहे हैं और इस महा मूरख कालिदास के इशारे को उसके होशियार पंडित ओलिमा सदियों से मानी पहना रहे हैं। कहानी कहते कहते खुद मुहम्मदी अल्लाह भटक जाता है, उसको यह अलिमाने दीन अपनी पच्चड़ लगा कर रस्ते पर लाते हैं। जब तक आम मुसलमान इन मौलानाओं से भपूर नफरत नहीं करेंगे, इनका उद्धार होने वाला नहीं.*बात मूसा की चले तो ईसा को कैसे भूलें? कुरआन के बनी ये तो उम्मी की फितरत बन चुकी है, इस बात की गवाह खुद कुरआन है. मुहम्मदी अल्लाह कहता है - - -बात मूसा की चले तो ईसा को कैसे भूलेलें कुरआन के बानी ये तो उम्मी की फ़ितरत बन चुकी है, इस बात की गवाह खुद कुरआन है. मुहम्मदी अल्लाह कहता है - -
-" मरियम पर उनके बड़ा भारी बोहतान धरने की वजह और उनके इस कहने की वजेह से हम ने मसीह ईसा इब्ने मरियम जो कि अल्लाह के रसूल हैं को क़त्ल कर दिया गाया. हालाँकि उन्हों ने न उनको क़त्ल किया, न उनको सूली पर चढाया, लेकिन उनको इश्तेबाह हो गया और लोग उनके बारे में इख्तेलाफ़ करते हैं, वोह गलत ख़याल में हैं, उनके पास इसकी कोई दलील नहीं है बजुज़ इसके कि तखमिनी बातों पर अमल करने के और उन्हों ने उनको यकीनी बात है कि क़त्ल नहीं किया बल्कि अल्लाह ताला ने उनको अपनी तरफ उठा लिया और अल्लाह ताला ज़बर दस्त हिकमत वाले हैं और कोई शख्स अहल किताब से नहीं रहता मगर वोह ईसा अलैहिस्सलाम की अपने मरने से पहले ज़रूर तस्दीक कर लेता है और क़यामत के रोज़ वोह इन पर गवाही देंगे."
सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात( 156-159)
मूसा और ईसा अरब दुन्या की धार्मिक केंद्र के दो ऐसे विन्दु हैं जिनपर पूरी पश्चिम ईसाई और यहूदी आबादी केन्द्रित है ओल्ड टेस्टामेंट यानी तौरेत इन को मान्य है. इनकी आबादी दुन्या में सर्वाधिक है और दुन्या की कुल आबादी का आधे से ज्यादा है. कहा जा सकता है कि तौरेत दुन्या की सब से पुरानी रचना है जो मूसा कालीन नबियों और स्वयं मूसा द्वारा शुरू की गई और दाऊद के गीतों को अपने दामन में समेटे हुए ईसा काल तक पहुची, आदम और हव्वा की कहानी और दुन्या का वजूद छह सात हज़ार साल पहले इसमें ज़रूर कोरी कल्पना है जिसे खुद इस की तहरीर कंडम करत्ती है मगर बाद के वाकिए हैरत नाक सच बयान करते हैं.ऐसी कीमती दस्तावेज़ को मन्दर्जा बाला मुहम्मद की जेहालत, बल्कि दीवानगी के आलम में बाकी गई बकवास को लाना तौरेत की तौहीन है. जिसको अल्लाह खुद शक ओ शुबहा भरी आयत कहता हो उसको समझने की क्या ज़रुरत? जाहिल क़ौम इसे पढ़ती रहे और अपने मुर्दों को बख़श कर उनका भी आकबत ख़राब करती रहे.हम कहते हैं मुसलमान क्यूँ नहीं सोचता की उसके अल्लाह अगर हिकमत वाला है तो अपनी आयत साफ साफ क्यूँ अपने बन्दों को बतला सका, क्यूँ कारामद बातें नहीं बतलाएं? क्यूँ बार बार ईसा मूसा की और उनकी उम्मत की बक्वासें हम हिदुस्तानियों के कानों में भरे हुए है? वह फिर दोहरा रहा है की यहूदियों पर बहुत सी चीज़ें हराम करदीं अरे तेल लेने गए यहूदी, करदी होंगी उन पर हराम, हलाल, हमसे क्या लेना देना, क्यों हम इन बातों को दोहराए जा रहे है? यहूदी ज्यूज़ बन गए आसमान में छेद कर रहे हैं और हम नक्काल मुसलमान उनकी क़ब्रो की मरम्मत करके मुल्लाओं को पाल पोस रहे हैं हमारे लिए दो जून की रोटी मोहल है, ये अपनी माँ के खसम ओलिमा हम से कुरानी गलाज़त ढुलवा रहे हैं। पैदाइशी जाहिल अल्लाह एक बार फिर नूह को उठता है, पूरे कुरान में बार बार वह इन्हीं गिने चुने नामों को लेता है जो इस ने सुन रखे हैं, कहता है।
"और मूसा से अल्लाह ने खास तौर पर कलाम फ़रमाया, उन सब को खुश खबरी देने वाले और खौफ सुनाने वाले पैगम्बर इस लिए बना कर भेजा था ताकि अल्लाह के सामने इन पैगम्बरों के बाद कोई उज्र बाकी न रहे और अल्लाह ताला पूरे ज़ोर वाले और बड़ी हिकमत वाले हैं।"
सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (166)
पूरे कुरआन में अल्लाह खुद को कम ज़र्फों की तरह ज़ोर वाला और हिकमत वाला बार बार दोहराता है। दर अस्ल यह मुहम्मद का घररा बोल रहा है धमकी से काम ले रहे हैं, जहाँ अमलन ज़ोर और ज़बर की ज़रुरत पड़ी है वहाँ साबित कर दिया है. मुहम्मद एक बद तरीन ज़ालिम इन्सान था जो जंगे बदर के अपने बचपन के बीस साथियों को तीन दिन तक मैदाने जंग में सड़ने दिया थ, फिर उनका नाम ले ले कर एक कुँए में ताने देते हुए फिक्वाया था. वहीँ जंगे ओहद में जंगी कैदी बना सफ़े आखिर में नाम पुकारे जाने पर खामोश मुंह छिपाए खडा रहा और मुर्दा बन कर बच गया. जो अल्लाह बना ज़ोर दिखला रहा है वह मक्र में भी ताक था। देखिए कि बे गैरत बना अल्लाह क्या कहता है - - -

" लेकिन अल्लाह ताला बज़रिए इस कुरआन के जिस को आप के पास भेजा है और भेजा भी अपने अमली कमाल के साथ, शहादत दे रहे हैं फ़रिश्ते, तस्दीक कर रहे हैं और अल्लाह ताला की ही शहादत काफ़ी है. जो लोग मुनकिर हैं और खुदाई दीन के माने हैं, बड़ी दूर कि गुमराही में जा पड़े हैं।"
सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (167)
वाह! मुद्दआ ओनका है अपने आलम तक़रीर का, अल्लाह का अमली कमाल भी कुछ ऐसा ही है कि जैसे मुहम्मद पर कुरआन नाज़िल हुई। मुहम्मद अपने दोनों हाथ रेहल बना कर हवा में फैलाए हुए थे कि कुरआन आसमान से अपने दोनों बाज़ुओं से उड़ती हुई आई और मुहम्मद के बाँहों में पनाह लेती हुई सीने में समा गई। तभी तो इसे मुस्लमान आसमानी किताब कहते हैं और सीने बसीने क़ायम रहने वाली भी। मदारी मुहम्मद डुगडुगी बजा कर मुसलमानों को हैरत ज़दा कर रहे हैं (गो कि यहूदियों के इसी मुताल्बे पर हज़ार उनके ताने के बाद भी मुहम्मद न दिखा सके). मुस्लमान मुहम्मद के पास आ गए इस लिए इन को पास की गुमराही में वह डाले हुए हैं. इन दिनों दूर की गुमराही मुहम्मद का तकिया कलाम बना हुवा है।

"ऐ तमाम लोगो! यह तुहारे पास तुहारे रसूल अल्लाह कि तरफ से तशरीफ़ लाए हैं, सो तुम यकीन रखो तुम्हारे लिए बेहतर है।"

सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (173)

मुहम्मद लोगों को फुसला रहे हैं, लोग हर दौर में काइयाँ हुवा करत्ते हैं, वह अपना फ़ायदा देख कर रिसालत का फायदा उठते है. कुर्ब जवार में वह हर एक पर पैनी नज़र रखते है, जहाँ किसी में खुद सरी देखते हैं, ज़िन्दा उठवा लेते हैं. मंज़रे आम पर बांध कर इबरत नाक सज़ाएं देते हैं. जिस से अमन ओ अमान का ख़तरा होता है उसको एक मुक़रार मुद्दत तक झेलते है. ओलिमा हर बात खूब जानते हैं मगर हर मुहम्मदी ऐबों की पर्दा पोशी करते हैं, इसी में उनकी खैर है. मुसलमानों में एक अवामी इन्कलाब आना बेहद ज़रूरी है।

"मसीह इब्ने मरियम तो और कुछ भी नहीं, अलबत्ता अल्लाह के रसूल हैं. मसीह हरगिज़ अल्लाह के बन्दे बन्ने से आर नहीं करेंगे और न मुक़र्रिब फ़रिश्ते।"

सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (174)

मुहम्मद फितरत से एक लड़ाका, शर्री और शिद्दत पसंद इन्सान थे. दख्ल अंदाजी उनकी खू में थी. तमाम आलम पर छाई ईसाइयत को छेद कर एक बड़ी ताकत से बैर बाधना उनकी सिर्फ हिमाकत कही जा सकती है जिसका नतीजा दुन्या की करोरों जानें अपने वजूद को गँवा कर अदा कर चुकी हैं और करती रहेंगी.


"अगर कोई शख्स मर जाए जिस की कोई औलाद न हो, जिस की बहन हो तो उसको उसके तुर्के का आधा मिलेगा और वोह शख्स उसका वारिस होगा और अगर उसकी औलाद न हों और अगर दो हों तो उनको उसके तुर्के का दो तिहाई मलेगा और अगर भाई बहन हों मर्द, औरत तो एक मर्द को दो औरतों के हिस्से के बराबर. अल्लाह ताला इस लिए बयान करते हैं कि तुम गुमराही में मत पडो और अल्लाह ताला हर चीज़ को जानने वाले हैं।"

सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (177)

यह है कुरानी अल्लाह की हिकमती क़ानून जिस पर बड़े बड़े कानून दान अपने सरों को आपस में लड़ा लड़ा कर लहू लुहान कर सकते हैं और अलिमान दीन दूर खड़े तमाशा देखा करें।
'मोमिन'


11 comments:

  1. आपके इस वाक्‍य ''स्वयम्भू अंतिम अवतार (जिसके वर्तमान हिंदी कार्य वाहक आप बने हुए हैं)।'' के बारे में मेरा कहना है कि मुहम्‍मद सल्‍ल. स्‍वयं अंतिम अवतार नहीं बने अल्‍लाह ने कहा और बनाया,, अब तो कई हिन्‍दू भाईयों ने ऐतिहासि‍क शोध करके हिन्‍दू, जैन, बौध, ईसाई और यहूदियों का भी उन्‍हीं का अंतिम अवतार साबित कर दिया है, बहुत जल्‍द इसपर मेरा ब्‍लाग अंतिम अवतार पर देखोगे, फिलहाल मेरे ब्‍लाग islaminhindi.blogspto.com से पढिये श्रीवास्‍तव जी की पुस्‍तक 'हजरत मुहम्‍मद और भारतीय धर्मग्रंथ''
    आपके इस वाक्‍य ''ए आर रहमान का इस्लामी दुन्या में बड़ा शोर है,'' के बारे में मेरा कहना है कि आपके पास, आप जैसे लोगों में उनका शौर होगा, जो मेरे चारों तरफ हैं उनमें अक्‍सर नहीं जानते यकीन ना हो तो किसी किन्‍हीं 10 मुसलमानों से पूछ लो लेकिन वह मुसलमान जो दूर से ही पता लग जाता है कि यह मुसलमान है,दुनिया भी जानती है कौन हैं मुसलमान बस अन्‍जान बनी हुई हैं, मुसलमान वह जिसे देखकर पूछना ना पडे कि तुम मुसलमान हो तेरे और मेरे जैसे नहीं, ऐसे लोगों से पूछना फिर बताना कितनों को मालूम है कि कौन है ए आर रहमान, इसकी वजह है उसने इस्‍लाम कबूल किया है अपनाया नहीं, इस्‍लाम में संगीत, नाच गाने, बेहयाई से बचने को कहा गया है, जो इन पर ना चल सका, जिनके आपने नाम गिनाये हैं उनके लिये मेरा कहना है क‍ि वह नाम के मुसलमान हैं मेरे और तुम्‍हारे जैसे,
    आगे से कुरआन पर जो लिखो, उसका नेट पर मौजूद कुरआन के हिन्‍दी अनूवाद से लिखा करो ताकि दूध का दूध पानी पानी हो जाये,
    www.quranhindi.com (जमात इस्‍लामी हिन्‍द की पूरी वेब की pdf book मेरे ब्‍लाग से डाउनलोड कर लो)
    www.aquran.com (शिया भाई की)
    www.altafseer.com (अठारह भाषाओं में अनुवाद उपलब्‍ध, इसके हिन्‍दी अनुवाद को मैंने यूनिकोड कर लिया है जो वेब मित्रों को भेज कर मशवरा कर रहा हॅं कि कैसे इसे नेट पर डाला जाये)
    www.al-shaia.org (ईरान की वेब यूनिकोड में परन्‍तु अभी अधूरा, 70 से आगे की कोई सूरत यहां देख लिया करो)
    मुझे किताबी कीडा बताते हो, अरे मैं तो गुनहगार हूं , मैं भी नाम का मुसलमान हूं बस आप जैसों की इस्‍लाम पर बकवास ने मुझे मजबूर किया कि मैं लिखूं, दूध का दुध और पानी का पानी कर दूंगा, इन्‍शाअल्‍लाह
    अभी भी वक्‍त है पढ लो 'आपकी अमानत आपकी सेवा में' फिर ना कहना हमें कोई रास्‍ता दिखाने वाला नहीं मिला था, जिन को तुम ढपली कहते हो उन अल्‍लाह के चैलंजो पर दौबारा गौर करो, जो विस्‍तारपूर्वक मेरे ब्‍लाग पर हैं
    1- अल्‍लाह का चैलेंज पूरी मानव जाति को (क़ुरआन में 114 नमूने हैं उनमें से किसी एक जैसा अध्‍याय/सूरत बनादो)
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/1-7.html
    2- अल्लाह का चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता।
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/3-7.html
    3- अल्लाह का चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/4-7.html
    4- अल्‍लाह का चैलेंजः कुरआन में विरोधाभास नहीं
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/blog-post.html
    2009
    5- अल्‍लाह का चैलेंजः आसमानी पुस्‍तक केवल चार
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/5-7.html
    2009
    6- खुदाई चैलेंज: यहूदियों (इसराईलियों) को कभी शांति नहीं मिलेगी’’
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/2-7.htm

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  2. AGAR AAPKO APNI ISLAH KARNI TO DR. ZAKIR NAIK KA "PEACE TV 24 HOUR" AAP JESE PIYASO KE LIYE SHURU KARA DIYA HE, DEKH LIYA KARO OR GOR SE SUN LIYA KARO AAPKE TAMAM SAWAL KA JAWAB AAPKO TASALLI BAKHSH MILL JAYE GA,

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  3. AAP VOH LOG HO JO KHUD BHI GUMRAH HOTE HO OR LOGO KO BHI GUMRAH KARTE HO , AAP JESE LOGO KO KEHTE HE "NEEM HAKIM KHATRE JAAN"
    MERI BAAT YAAD RAKHNA KUCH BHI LIKHNE SE PEHLE "PEACE TV " ZAROOR DEKH LENA

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  4. http://video.google.com/videoplay?docid=-8136987940224200893# AAPKI SAHOOLAT KE LIYE AAPKO LINK BHI DE RAHA HOON,

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  5. mujhe lagta hai aap mansik roop se beemar ho apna ilaz karao.aur tum momin nahi ho. momin vo hota hai jo apni raza ko allah[ishwar]ki raza me mila de

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  6. dear brother agar aap islam se dushmani rakhte ho to thoda intzar karo allah gawah he khilafat aane ke bbad beech chourahe par zinda jalaonga ya aapke jism ke itne tukde karonga ki aap ki naslen bhi guzar jaen to bhi na gin paen zara aur sabr karo ye mer4a aapko open challange he chaho to mujh se chetting ke zariyae bbat karo "devid@oram.com par

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  7. ya ghazi ye tere pur israr bande jinhe toone bakhsha he zok e khudai.......do neem jinki thokar se sahra o dariya simat ke pahad jinki haibat se rai.shahadat he maqsood e matloob e "MOMIN"na male ghaneemat na kishwar kashai..........ye baat aya he duniyan par ham phool bhi hen talwar bhi he......ya bazme jahan mahkayenge ya khon me naha kar dam lenge.so chahe kafeel ab kuchh bhi ho har hal me apna haq lenge.izzat se jiye to jeelenge ya jam e shahadat pee lenge.........

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  8. allah ke siva duniya me koi mabud nahi hai jo shaks islam ke bare me bura kahega allah use duniya me barbad karega

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  9. mr. jhuthe momin sahab, me zyadah nahi kahunga bas itna kahunga ki pehle aap ji han aap sahih se ba gor-o-fiqr quraan or hadiss paden phir rasul allah(S.a.w) or unke sahaba ki jeevniyan sahih kitabon se paren kunki aap khud galat hain or galat hi kitaben Arun Suri jese shakhs par li h, to plz pehle sahih jankari lo dr. zakir naik aap ke liye islam ko janne ke liye ache guidance sabit honge unse cont. karon ya unki cd dekho, or han khud kene se koi momin ya iman wala nahi hota h uski kuch sharten hoti hain jo puri krni parti h or voh tumme bilkul nahi hain............
    ok mr.jo bhi ho momin to ho nahi.
    or agar mujhse hi kuch sikhna ho ta shok se aaskte ho
    mohdshahzadabbasi@hotmail.com

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  10. नदीम भाई ने जो कहा है सच कहा है तथाकथित मोमिन को...........

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  11. Are momin bhai aap jo bhi ho?Yhudi ya Isaayi to ho nahi fir aap yahudi aur isaayi ke baare me itna sab kaise jante hain?Agar aap yahudi Ya isaayi ho to aap apni taurait ya inzeel se allah aur akhri nabi mohammad sallallah hu alihe wasallam ke bare me aapko pata hota.Aap kuraan ko achchi tarah se jante ho to aap Iblees ko bhi jante honge iska zikr kuraan me kai baar kiya gaya hai.Aap par Iblees haawi ho chuka hai aur itna haawi hai ki aapko na duniya ka chodega na kahin ka.Agar aap ko Iblees se bachna hai to sachche dil se toba karte hue ye kalma padh lena chahiye (ASHADU ALLAHILAHA ILLALLAHU WAHDAHU LASHARIKA LAHU WAASHHADU ANNA MUHAMMADUR RASULULLAH.S.A.W )Aur marte dam tak is par amale jariya rakhna chahiye...sachche dil se.....lailaha illallah muhammadur rasulullah.....

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