Friday, May 8, 2009

हर्फ़-ए-ग़लत (क़ुरआन की जन्गी हक़ीक़त)

(पिछले मज़मून का हिन्दी भाषांतरण का प्रयत्न)


ईमान और ईमानदारी की बात


"प्रारम्भ करता हूँ मैं अपनी अंतर आत्मा की आवाज़ से, अपने बौधिक स्तर की ऊंचाइयों को छू कर, नवीनतम ज्ञान और शिक्षा को साक्षी बना कर एवं प्रकृतिक सत्य के प्रकाश में कि जो कुछ मेरी लेखनी में होगा वोह सत्य होगा, मिथ्य, पक्षपात एवं राजनीति से प्रेरित न होगा. मेरा अभियान मानव समाज का उद्धार करना है, किसी से बैर न किसी से लगाव, किसी से डर न किसी का अनुचित सम्मान. मैं एक मोमिन हूँ जो औचित्य को लौकिक आधार पर नापता, तौलता और मानता है" .जैसा कि ग़ालिब कहते हैं - - -


वफ़ा दारी बशर्ते उस्तवारी अस्ल ए ईमाँ है.


मुस्लिम वस्तुतः इसलाम को स्वीकार किए हुए होता है, चाहे वह बात उचित हो अथवा अनुचित. इस्लाम इस धरती पर अवैध व्यवस्था है जो कोई ना जायज़ मज़हब तो हो सकता है, धर्म नहीं. "माले गनीमत" के घृणित जीविका साधन ने इसे नई दिशा दे दी है जो की धीरे धीरे एक विराट संसाधन बन कर जंगी ब्यवसाय बन गया है. क़त्ताल, जज़्या और मुस्लमान बन जाने की अवस्था में ज़कात की भरपाई, जनता के साथ अत्याचार, दमन और अन्याय के अतरिक्त इसलाम ने दुन्या और मानवता को और कुछ नहीं दिया. इसलाम ने दुन्या पर जो कहर ढाया है, और जो मानव रक्त पिया है, कदाचित किसी दूसरे संगठन ने नहीं. अतीत को ढका नहीं जा सकता. कुरआन स्वयंभु रसूल मुहम्मद की गढ़ी हुई बकवास है जिस को किताब का रूप देकर ईश वाणी बना दिया गया है. यह किताब घृणा, हिंसा, द्वेष, मारकाट और अन्याय सिखलाती है, इंसानों में आपस में फूट पैदा करती है, जंग जंग और जंग, मानव समाज को तो शांति पूर्वक रहने ही नहीं देती. नए मानव मूल्य हैं कि इसको झेल कर भी मुसलमानों को राय दे रहे हैं कि वोह स्वयं अपने हाथों से इए कुरानी पन्नों को फाड़ कर माटी में मिला दें, यह उनकी नेक सलाह है, वरना वह चाहें तो खुद मुसलमानों को इन के बुरे परिणाम तक पहुंचा सकते हैं. मुसलमानों ने "कलिमा ए नामुराद" को पढ़ कर सिर्फ़ अपना परलोक संवारा है(दर अस्ल ये आत्म घात है), दुन्या को दिया क्या है? दुन्या में जो कुछ है इन्हीं भौतिक वादियों पश्चिमी देशों देन है और तमाम साइंस दानों के ज्ञान की बरकतें हैं, जिनको यह परलोक के सौदागर धर्म गुरु बड़ी निर्लज्जता के साथ भोग रहे हैं.
अब मैं सोई हुई क़ौम की खस्ता हाली के कारणों पर आता हूँ. इसलाम अरबों की दयनीय आर्थिक दुरदशा में अपने दुर्भाग्य के साथ अस्तित्व में आया था. डाका ज़नी, और लूट पाट अभी तक मानव इतिहास में दण्डनीय अपराध हुआ करता था, इसे " माल ए गनीमत" (अर्थात वोह धन जो उचित तो न हो मगर अनुचित भी न हो) कह कर मुहम्मद ने इसे जायज़ करार दे दिया. मज़हब के नाम पर बेकारों को जंगी लूट का सरल साधन मिल गया, बनू नसीर और खैबर जैसी हजारों बस्तियां इस नई बीमारी से तबाह ओ बर्बाद हुईं. दूसरी ओर " इस्लामी इल्म ए जेहालत" अर्थात धार्मिक विद्वता का ढिंढोरा मुस्लिम शाशकों ने पिटवाया जिस से एक नया जत्था ओलिमा का पैदा हुवा जो की जंगी विषमताओं से बचना चाहता था, वोह इस में लग गया. यह साक्षर मगर कायर गिरोह लेखन शक्ति दिखलाने लगा और वह ला खैरा और निरक्षर गिरोह तलवार शक्ति. फिर क्या था मिथ्य, अनर्गल, निरर्थक, अतिशियोक्ति, और छल कपट के पुल बंधने लगे, युद्घ में फ़रिश्ते लड़ने लगे, अल्लाह उसमें हस्तक्षेप करने लगा और जिब्रील अलैहिस सलाम मुहम्मद के दुम छल्ले बन गए. सैकडों साल से इस इस्लामी जड़ता में बौद्धिकता एवं तत्व ज्ञान भरे जा रहे हैं. मुसलमानों के सबसे बड़े दोषी यह धूर्त ओलिमा हैं. यह नकारात्मक को धनात्मक में बदलने में दक्ष होते हैं. अज्ञानी, जड़,मूर्ख और जाहिल को उम्मी लिख कर उसकी अदूर दर्शीयता में, दूर अन्देशियाँ भरते रहते हैं. हमेशा ही इनके कपट और छल का बोलबाला रहा है, कई बार इनका सर भी विषैले नागों की तरह कुचला गया है और चीन की तरह ही इन पर प्रतिबंध भी लगाया गया मगर यह पापी होते हैं बड़े सख्त जान. आज इन का उत्थान शिखर पर है. भारत का प्रजातांत्रिक विधान इनके फलने फूलने के लिए बहुत अनुकूल है. इनको कोई चिंता नहीं मुसलमानों की दुर्दशा की, इनकी बला से हुवा करे, इनको तो मुसलमानों पर प्रभुत्व चाहिए और माल ए मुफ़्त के साथ साथ सम्मान. इनका एक संगठित गिरोह बना हुवा है जो मुस्लिम समाज को चारो तरफ से जकडे हुए है. बहुत बिडला कोई होगा जो इनके जाल से बचा हुवा होगा. जेहाद की लूट ख़त्म हो चुकी है मगर दर पर्दा मदरसे की शिक्षा मुसलमानों को प्रभावित किए हुए है.
यह धूर्त ओलिमा भारत की राजनीति में चिल्लाते फिरते हैं की इसलाम शांति का झंडा बरदार है. कोई इन से पूछे की मदरसे में पढाई जाने वाली कुरआन और हदीस क्या कोई और हैं या वही जिनमें जेहाद और नफरत की सडांध आती है? माले गनीमत जो कभी गैर मुस्लिमों से बज़ोर ए तलवार मुस्लमान वसूल किया करते थे, अब वह कम हर आलिम मुसलमानों से जज़्या किसी न किसी रूप में ले रहा है. इस से मुसलमानों का दोहरा नुकसान हो रहा है कि इसके लिए उनको आधुनिक शिक्षा से वंचित रखा जा रहा है, दूसरा आर्थिक नुकसान और कभी कभी जानी नुकसान भी.
मुसलमानों की भलाई इसी में है की सरकार इस मुस्लिम इशू को ही बंद करे, बहैसियत मुस्लमान कहीं पर कोई रिआयत न हो. अल्प संख्यक का विचार ही कच्चा है, मुसलमानों को वर्ग विशेष कहना बंद हो. सरकार ने जो स्कूल कालेज खोल रखे हैं, वहां कोई भेद भाव नहीं है, हर बच्चा वहां शिक्षा प्राप्त कर सकता है. जो इसको छोड़ कर मदरसा जाता है इसकी ज़िम्मेदारी सरकार क्यूं ले? बल्कि ऐसे लोगों पर जांच की द्रष्टि रहे जो इन मदरसों में पढ़ कर तालिबानी राहों पर जाने के लिए अमादा किए जाते हैं. मैं आगाह करता हूँ कि तुम्हारा मज़हब इसलाम पूर्णतया गलत है जिस पर सारा ज़माना लानत भेज रहा है. तुम्हारे यह आलिम तुम्हारे दोषी हैं. इनको समझने प्रयत्न करो. अभी सवेरा है, जग जाओ, जागना बहुत आसान है, बस दिल की आँखें खोलना है। तुम्हें इसलाम छोड़ कर खुदा न खास्ता हिन्दू नहीं बनना है, न क्रिशचन, मामूली से फर्क के साथ एक ठोस मोमिन बनाना है. तुम्हारा नाम, तुम्हारा कल्चर, तुम्हारी सभ्यता, रस्म ओ रिवाज, भाषा कुछ भी नहीं बदलेगा, बस मुक्ति पाओगे इस झूठे अल्लाह से जिसको मुहम्मद ने चौदह सौ साल पहले गढा था। नजात पा जाओगे उस स्वयम्भू रसूल से और उसकी जेहालत भरे एलान कुरआन और हदीस से जो तुम्हारे ऊपर लगे हुए दाग है। मगर हाँ मोमिन बनना भी आसान नहीं, मोमिन की परिभाषा समझना होगा.

'मोमिन'


सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा

(दूसरी किस्त)


अल्लाह नशे की हालत में नमाज़ के पास भटकने से भी मना करता है। मुसलमानों को जनाबत(शौच) इस्तेंजा(लिंग शोधन ) मुबाश्रत (सम्भोग) और तैममुम के तालमेल और तरीके समझाता है इस सिलसिले में यहूदियों की गुमराहियों से आगाह करता है कि वह तुम को भी अपना जैसा बनाना चाहते हैं. अल्लाह समझाता है की वह अल्फाज़ को तोड़ मरोड़ कर तुम्हारे साथ गुफ्तुगू में कज अदाई करते हैं. यहाँ पर सवाल उठता है कि न यहूदी हमारे संगी साथी हैं और न उनकी भाषा का हम से कोई लेना देना, इस पराई पंचायत में हम भारतीय लोगों को क्यूँ सदियों से घसीटा जा रहा है, क्यूँ ऐसे क़ुरआन का रटंत हम मुसलसल किए जा रहे है। फ़र्द कल माज़ी ए बईद में था कि हाफिज़ क़ुरआन बन कर ज़रीया मुआश दरसे क़ुरआन को बनता था, अब जब रौशनी नए इल्म की आ चुकी है तो ऐसे इल्म को तर्क करना और इसकी मुखालफ़त करना सच्चा ईमान बनता है। देखिए बे ईमान अल्लाह कहता है - -

-" उन को अल्लाह ने उन के कुफ्र के सबब अपनी रहमत से दूर फेंक दिया है। ए वह लोगो! जो किताब दी गए हो, तुम उस किताब पर ईमान लाओ जिस को हम ने नाज़िल फ़रमाया है, ऐसी हालत पर वोह सच बतलाती है जो तुम्हारे पास है, इस से पहले की हम चेहरों को बिलकुल मिटा डालें और उनको उनकी उलटी जानिब की तरफ बना दें या उन पर ऐसी लानत करें जैसी लानत उन हफ़्ता वालों पर की थी। अल्लाह जिस को चाहे मुक़द्दस बना दे, इस पर धागे के बराबर भी ज़ुल्म न होगा - - - वोह बुत और शैतान को मानते हैं। वोह लोग कुफ्फार के निस्बत कहते हैं की ये लोग बनिस्बत मुसलमानों के ज़्यादः राहे रास्त पर हैं - - - और दोज़ख में आतिश सोज़ाँ काफी है,"
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (43-55)

उम्मी मुहम्मद अपने क़ुरआन और हदीस में बवजेह उम्मियत हज़ार झूट गढा हो मगर उसमे उनके खिलाफ़ सदाक़त दर पर्दा दबे पाँव रूपोश बैठी नज़र आ ही जाती है. बुत को मानने वाले तो काफ़िर थे ही, बाकी उस वक़्त नुमायाँ कौमें हुवा करती थीं जो मशसूरे वक़्त थीं, ये शैतान के मानने वाले गालिबन नास्तिक हुवा करते थे? बडी ही जेहनी बलूगत थी जब इसलाम नाजिल हुवा, इसने तमाम ज़र खेजियाँ गारत करदीं. ये नास्तिक हमेशा गैर जानिब दार और इमान दार रहे हैं. यह इन की ही बे लाग आवाज़ होगी "वोह बुत और शैतान को मानते हैं. वोह लोग कुफ्फर के निस्बत कहते हैं कि ये लोग बनिस्बत मुसलमानों के ज़्यादः राहे रास्त पर हैं " जहाँ भी मुसलमानों के साथ किसी क़ौम का झगडा होता है, तीसरी ईमान दार आवाज़ ऐसी ही आती है. आज जो लोग गलती से मुस्लमान हैं, वक्ती तौर पर इस बात का बुरा मान सकते हैं, क्यूँ कि वोह नहीं जानते कि आम मुस्लमान फितरी तौर पर लड़ाका होता है जिसकी वकालत गाँधी जी भी करते हैं। मुहम्मदी अल्लाह आजतक अपने मुखालिफों का चेहरा मिटा कर उलटी जानिब तो कर नहीं सका मगर हाँ मुसलमानों की खोपडी को समते माजी की तरफ करने में कामयाब ज़रूर हुवा है।

" जो लोग अल्लाह की आयातों के मुनकिर हो जाएँगे उन को जहन्नम में इतना जलाया जाएगा कि इनकी खालें गल जाएँगी और इनको मज़ा चखाने के लिए नई खालें लगा दी जाएगी. बिला शक अल्लाह ज़बरदस्त हिकमत वाला है."
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (56)
गौर तलब है कि अल्लाह की इस हिकमत पर ही मुहक़्क़िक़ान क़ुरआन ने इस लग्वयात को क़ुरआन ए हकीम का नाम दिया है। इस को इतना उछाला गया है कि दुन्या में क़ुरआन एक हिकमत वाली किताब बन कर रह गई है। हिकमत क्या है? बस यही जो मुहम्मद की जेहालत और इस्लामी ओलिमा की अय्याराना चाल। अफ़सोस कि तालीम याफ़्ता मुस्लिम अवाम मेडिकल साइंस की ए बी सी से वाकिफ़ और कानो में बेहिसी का तेल डाले बैठे इन हराम जादों के साथ हम नावाला हम पियाला हैं।
"मुहम्मद का गलबा मदीना पर है, उन का फ़रमान है कि मुस्लमान अपने हर इन्फरादी और इजतमाई मुआमले अल्लाह और उसके रसूल के सामने पेश किया करें( अल्लाह तो कहीं पकड़ में आने से रहा, मतलब साफ़ था का कि अल्लाह का मतलब भी मुहम्मद है. कुछ मसलेहत पसंद लोग मुसलमानों, यहूदियों और दीगरों में अपने मुआमले मुहम्मदी पंचायत में न ले जाकर आपस में बैठ कर निपटा लेते हैं, ऐसे तरीकों की तारीफ़ करने की बजाय मुहम्मद इसे मुनफेक़त की रह क़रार देते हैं. कोई झगडा दो लागों का खामोशी से आपसी समझदारी से ख़त्म हो जाय, यह बात अल्लाह के रसूल को रास नहीं आती. इसको वोह शैतानी रास्ता बतलाते हैं. कुरान के मुताबिक़ हुए फैसले को ही सहीह मानते हैं. हर मुआमले का तस्फिया बहैसियत अल्लाह के रसूल के खुद करना कहते हैं।"
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (59-73)"

"और जो शख्स अल्लाह कि राह में लडेगा वोह ख्वाह जान से मारा जाए या ग़ालिब आ जाए तो इस का उजरे अज़ीम देंगे और तुम्हारे पास क्या उज़्र है कि तुम जेहाद न करो अल्लाह कि राह में।"
"सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (75)
यह मुहम्मदी क़ुरआन का अहेम पाठ है जिस पर भारत सरकार को सोचना होगा, किसी हिन्दू वादी संगठन को नहीं। ये आयात और इस से मिलती हुई आयतें मदरसों में मुस्लमान लड़कों के कच्चे ज़हनों में घोल घोल कर पिलाई जाती हैं जो बड़े होकर मौक़ा मिलते ही तालिबानी बन जाते हैं, बहरहाल अन्दर से जेहनी तौर पर तो वह बुनयादी देश द्रोही होते ही हैं, जो इस इन में रह कर इस ज़हर से बच जाए वह सोना है. हर राज नैतिक पार्टी को बिना हिचक मदरसों पर अंकुश लगाने की माँग करनी चाहिए बल्कि एक क़दम बढ़ा कर क़ुरआन की नाक़िस तालीम देने वाले सभी संगठनों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। इसका सब से ज़्यादा फ़ायदा मुस्लिम अवाम का होगा, नुक़सान दुश्मने क़ौम ओलिमा का और गुमराह करने वाले नेताओं का।

" फिर जब उन पर जेहाद करना फ़र्ज़ कर दिया गया तो क़िस्सा क्या हुआ कि उन में से बअज़् आदमी लोगों से ऐसा डरने लगे जैसे कोई अल्लाह से डरता हो, बल्कि इस भी ज़्यादह डरना और कहने लगे ए हमारे परवर दीगर! आप ने मुझ पर जेहाद क्यूँ फ़र्ज़ फरमा दिया? हम को और थोड़ी मुद्दत देदी होती ----"
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (77)

आयात गवाह है की मुहम्मद को लोग डर के मारे "ऐ मेरे परवर दिगर" कहते और वह उनको इस बात से मना भी न करते बल्कि महजूज़ होते जैसा की कुरानी तहरीर से ज़ाहिर है। हकीक़त भी है क़ुरआन में कई ऐसे इशारे मिलते हैं कि अल्लाह के रसूल से वोह अल्लाह नज़र आते हैं. खैर - - -खुदा का बेटा हो चुका है, ईश्वर के अवतार हो चुके है तो अल्लाह का डाकिया होना कोई बड़ी बड़ा झूट नहीं है। मुहम्मद जंगें बशक्ले हमला लोगों पर मुसल्लत करते थे जिस से लोगों का अमन ओ चैन गारत था। उनको अपनी जान ही नहीं माल भी लगाना पड़ता था. हमलों की कामयाबी पर लूटा गया माले गनीमत का पांचवां हिस्सा उनका होता. जंग के लिए साज़ ओ सामान ज़कात के तौर पर उगाही मुसलमानों से होती। दौर मज्कूरह में इसलाम मज़हब के बजाए गंदी सियासत बन चुका था. अज़ीज़ ओ अकारिब में नज़रया के बिना पर आपस में मिलने जुलने पर पाबंदी लगा दी गई थी। तफ़रक़ा नफ़रत में बदलता गया. बड़ा हादसती दौर था. भाई भाई का दुश्मन बन गया था. रिश्ते दारों में नफ़रत के बीज ऐसे पनप गए थे कि एक दूसरे को बिना मुतव्वत क़त्ल करने पर आमादा रहते, इंसानी समाज पर अल्लाह के हुक्म ने अज़ाब नाजिल कर रखा था। रद्दे अमल में मुहम्मद के मरते ही दो जंगें मुसलमानों ने आपस में ऐसी लड़ीन कि दो लाख मुसलमानो ने एक दूसरे को काट डाला गलिबन ये कहते हुए की इस इस्लामी अल्लाह को तूने पहले तसलीम किया - - - नहीं पहले तेरे बाप ने - -

" ऐ इंसान! तुझ को कोई खुश हाली पेश आती है, वोह महेज़ अल्लाह तअला की जानिब से है और कोई बद हाली पेश आवे, वोह तेरी तरफ़ से है और हम ने आप को पैगम्बर तमाम लोगों की तरफ़ से बना कर भेजा है और अल्लाह गवाह काफ़ी है."
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (79)

यह मोहम्मदी अल्लाह की ब्लेक मेलिंग है। अवाम को बेवकूफ बना रहा है. आज की जन्नत नुमा दुनिया, जदीद तरीन शहरों में बसने वाली आबादियाँ, इंसानी काविशों का नतीजा हैं, अल्लाह मियां की तामीरात नहीं। अफ्रीका में बसने वाले भूके नंगे लोग कबीलाई खुदाओं और इस्लामी अल्लाह की रहमतों के शिकार हैं. आप जनाब पैगम्बर हैं, इसका गवाह अल्लाह है, और अल्लाह का गवाह कौन है? आप ? बे वकूफ मुसलमानों आखें खोलो।

।"पस की आप अल्लाह की रह में कत्ताल कीजिए. आप को बजुज़ आप के ज़ाती फेल के कोई हुक्म नहीं और मुसलमानों को तरगीब दीजिए. अल्लाह से उम्मीद है की काफ़िरों के ज़ोर जंग को रोक देंगे और अल्लाह ताला ज़ोर जंग में ज़्यादा शदीद हैं और सख्त सज़ा देते हैं।"
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (84)

कैसी खतरनाक आयात हुवा करती थी कभी ये गैर मुस्स्लिमो के लिए और आज खुद मुसलामानों के लिए ये खतरनाक ही नहीं, शर्मनाक भी बन चुकी है जिसको वह ढकता फिर रहा है। मुहम्मद ने इंसानी फितरत की बद तरीन शक्ल नफ़रत को फ़रोग देकर एक राहे हयात बनाई थी जिसका नाम रखा इसलाम। उसका अंजाम कभी सोचा भी नहीं, क्यूंकि वोह सदाक़त से कोसों दूर थे. यह सच है कि उनके कबीले कुरैश की सरदारी की आरजू थी जैसे मूसा को बनी इस्राईल की बरतरी की, और ब्रह्मा को, ब्रह्मणों की श्रेष्टता की. इसके बाद उम्मत यानी जनता जनार्दन कोई भी हो, जहन्नम में जाए. आँख खोल कर देखा जा सकता है, सऊदी अरब मुहम्मद की अरब क़ौम कि आराम से ऐशो आराइश में गुज़र कर रही है और प्राचीन बुद्धिष्ट अफगानी दुन्या तालिबानी बनी हुई है, सिंध और पंजाब के हिन्दू अल्कएदी बन चुके हैं, हिदुस्तान के बीस करोड़ इन्सान मुफ़्त में साहिबे ईमान बने फिर रहे है, दे दो पचास पचास हज़ार रुपया तो ईमान घोल कर पी जाएँ. सब के सब गुमराह। होशियार मुहम्मद की कामयाबी है यह, अगर कामयाबी इसी को कहते हैं.

'मोमिन'


3 comments:

  1. इस ब्लोग को वर्ड प्रेस पर ले जाओ जनाब वर्ना ये ब्लाक हो जायेगा

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  2. आपके इस वाक्‍य ''स्वयम्भू अंतिम अवतार (जिसके वर्तमान हिंदी कार्य वाहक आप बने हुए हैं)।'' के बारे में मेरा कहना है कि मुहम्‍मद सल्‍ल. स्‍वयं अंतिम अवतार नहीं बने अल्‍लाह ने कहा और बनाया,, अब तो कई हिन्‍दू भाईयों ने ऐतिहासि‍क शोध करके हिन्‍दू, जैन, बौध, ईसाई और यहूदियों का भी उन्‍हीं का अंतिम अवतार साबित कर दिया है, बहुत जल्‍द इसपर मेरा ब्‍लाग अंतिम अवतार पर देखोगे, फिलहाल मेरे ब्‍लाग islaminhindi.blogspto.com से पढिये श्रीवास्‍तव जी की पुस्‍तक 'हजरत मुहम्‍मद और भारतीय धर्मग्रंथ''
    आपके इस वाक्‍य ''ए आर रहमान का इस्लामी दुन्या में बड़ा शोर है,'' के बारे में मेरा कहना है कि आपके पास, आप जैसे लोगों में उनका शौर होगा, जो मेरे चारों तरफ हैं उनमें अक्‍सर नहीं जानते यकीन ना हो तो किसी किन्‍हीं 10 मुसलमानों से पूछ लो लेकिन वह मुसलमान जो दूर से ही पता लग जाता है कि यह मुसलमान है,दुनिया भी जानती है कौन हैं मुसलमान बस अन्‍जान बनी हुई हैं, मुसलमान वह जिसे देखकर पूछना ना पडे कि तुम मुसलमान हो तेरे और मेरे जैसे नहीं, ऐसे लोगों से पूछना फिर बताना कितनों को मालूम है कि कौन है ए आर रहमान, इसकी वजह है उसने इस्‍लाम कबूल किया है अपनाया नहीं, इस्‍लाम में संगीत, नाच गाने, बेहयाई से बचने को कहा गया है, जो इन पर ना चल सका, जिनके आपने नाम गिनाये हैं उनके लिये मेरा कहना है क‍ि वह नाम के मुसलमान हैं मेरे और तुम्‍हारे जैसे,
    आगे से कुरआन पर जो लिखो, उसका नेट पर मौजूद कुरआन के हिन्‍दी अनूवाद से लिखा करो ताकि दूध का दूध पानी पानी हो जाये,
    www.quranhindi.com (जमात इस्‍लामी हिन्‍द की पूरी वेब की pdf book मेरे ब्‍लाग से डाउनलोड कर लो)
    www.aquran.com (शिया भाई की)
    www.altafseer.com (अठारह भाषाओं में अनुवाद उपलब्‍ध, इसके हिन्‍दी अनुवाद को मैंने यूनिकोड कर लिया है जो वेब मित्रों को भेज कर मशवरा कर रहा हॅं कि कैसे इसे नेट पर डाला जाये)
    www.al-shaia.org (ईरान की वेब यूनिकोड में परन्‍तु अभी अधूरा, 70 से आगे की कोई सूरत यहां देख लिया करो)
    मुझे किताबी कीडा बताते हो, अरे मैं तो गुनहगार हूं , मैं भी नाम का मुसलमान हूं बस आप जैसों की इस्‍लाम पर बकवास ने मुझे मजबूर किया कि मैं लिखूं, दूध का दुध और पानी का पानी कर दूंगा, इन्‍शाअल्‍लाह
    अभी भी वक्‍त है पढ लो 'आपकी अमानत आपकी सेवा में' फिर ना कहना हमें कोई रास्‍ता दिखाने वाला नहीं मिला था, जिन को तुम ढपली कहते हो उन अल्‍लाह के चैलंजो पर दौबारा गौर करो, जो विस्‍तारपूर्वक मेरे ब्‍लाग पर हैं
    1- अल्‍लाह का चैलेंज पूरी मानव जाति को (क़ुरआन में 114 नमूने हैं उनमें से किसी एक जैसा अध्‍याय/सूरत बनादो)
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/1-7.html
    2- अल्लाह का चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता।
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/3-7.html
    3- अल्लाह का चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/4-7.html
    4- अल्‍लाह का चैलेंजः कुरआन में विरोधाभास नहीं
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/blog-post.html
    2009
    5- अल्‍लाह का चैलेंजः आसमानी पुस्‍तक केवल चार
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/5-7.html
    2009
    6- खुदाई चैलेंज: यहूदियों (इसराईलियों) को कभी शांति नहीं मिलेगी’’
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/2-7.htm

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  3. अल्‍लाह के चैलेंज
    islaminhindi.blogspot.com

    सात धर्मों के अ‍ंतिम अवतार मुहम्मद सल्ल.
    हिन्दी इंग्लिश और उर्दू में पुस्तकें
    antimawtar.blogspot.com
    पर उपलब्ध

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