Wednesday, April 29, 2009

खुदा

बेदारियां -(८)

अलबेदर



खुदा बहुत ही व्यक्ति गत मुआमला है. इसे मानने और न मानने या अपने तौर पर मानने की आज़ादी हर इंसान को होना चाहिए. वैसे खुदा को मानने का फ़ायदा जेहनी शांति से अधिक और कुछ भी नहीं, वह भी ज़्यादः हिस्सा आत्म घात है और थोडा सा मनोवैज्ञनिक उपचार. मज़हब और धर्मों ने खुदा को लेकर मानव अधिकार में सेंध लगा कर इस को समूह के हवाले कर दिया है. इस तरह मानव जाति को खुदा का कैदी बना कर रख दिया. खास कर इस्लामी मुमालिक में अंतर राष्टीय "खुदा" क़ुरआनी "अल्लाह" के रूप में बदल गया है. अब यहाँ अवाम इज्तिमाई (सामूहिक) इस्लामी अल्लाह का कैदी बन गई है, इस तरह वहां पर खुदा को मानने की व्यक्ति गत आज़ादी ख़त्म हो गई.
खुदा क्या है? हर कोई इसे अपनी जेहनी सतह पर कभी न कभी ज़रूर लाता है. यह लफ्ज़ फारसी का है जो की शब्द खुद से बना है. पौराणिक ईरानी विचार धारा, वह जो खुद बन जाए, जिसे किसी ने नहीं बनाया, जो खुद बखुद बन गया हो वह खुदा है। बाकी तमाम चीजों का बनाने वाला खुदा है. खुदा पूरे ब्रम्ह्मांड एवं समस्त जीव जंतु का मालिक है. यही ख़याल यहूदियों का है मगर थोड़े अंतर के साथ, वोह यह कि मालिक तो पूरे ब्रम्ह्मांड एवं समस्त जीव जंतु का है मगर मेहरबान है सिर्फ क़ौम यहूद पर. इसी तरह इस्लामी अल्लाह है तो रब्बुल आलमीन मगर जन्नत देगा सिर्फ मुसलमानों को, बाकियों को नरक में झोंकेगा. ईसाइयत भी इस तंग नज़री से मुक्त नहीं. बहार हाल इन सब के खुदाओं की बुनियाद ईरानी फिलासफ़ी पर रखी हुई है कि खुदा खुद से है, इसका बनाने वाला कोई नहीं. सब का बनाने वाला वह है वोह एक है, इस बात पर इन सभों को इत्तेफाक है. हिदू आस्था इस से कुछ हट के है, वोह अकेला नहीं बल्कि विविध अधिकारों के अंतरगत वोह पूरी टीम है मगर खुद साख्ता तीन हैं १-ब्रम्ह्मा २-विष्णु ३-महेश। पहले का काम है ब्रम्ह्मांड की उत्पत्ति, दूसरे का काम है इसे चलाना और तीसरे का काम है इस सृष्टि को मिटाना। यह प्रोग्राम लम्बी काल चक्र में चला करता है. तमाम दीगर कौमों से प्रभावित होकर अब बहुत से हिन्दू भी एकेश्वर वाद को मानने लगे हैं.
फ़ारसी का ही एक लफ्ज़ है बन्दा जिसके माने इन्सान के ज़रूर होते हैं मगर पाबन्द, दास सामान मानव के अर्थ में सहीह अर्थ होगा. जिसके ऊपर बंदिश हो, जिसके लिए बंदिश शर्ते अव्वल है वैसे ही जैसे खुदा में खुद सरी है.
यह खुदा और बन्दे की खुद सरी और पाबन्दी का ईरानी फ़लसफा इन्सान को सदियों से गुमराह किए हुए है. यह फ़लसफा इतना कामयाब रहा है कि एक आम आदमी इस से हट कर कुछ सोचना ही नहीं चाहता, खास कर पूर्वी चिंतन, मगर असलियत इस से कुछ हट के है, न खुदा खुद से है, न बन्दा बंदिश में है. सच तो यह है की इस फलसफे की व्योसायिक समाधियाँ प्रकृति
की भूमि पर अमर बेल की तरह फैली हुई हैं, जिन पर धर्म ओ मज़ाहिब की पुरोहिती हो रही है. जिस रोज़ यह छलावा इंसानी दिमागों को मुक्त कर देगा उस रोज़ खुदा की खुदी बाकी रह जाएगी न बंदे की पाबन्दी. जो कुछ बचेगा वह प्रकृति होगी जिसका कोई खुदा होगा न कोई बन्दा. अब हम को तो यह ईरानी फ़लसफा उल्टा नज़र आने लगा है. कई मोर्चे पर खुदा बे बस नज़र आने लगा है और बन्दा बा स्वाधिकार होता चला जा रहा है. मानव अपने प्रयत्नों से चाँद तारों तक पहुँच रहा है जो खुदा के लिए एक चैलेन्ज है मगर प्रकृति इस काम में उसकी मदद गार है. हर खुदाई कहर पर इन्सान धीरे धीरे काबू पा रहा है, दुन्या की कई बीमारियाँ इंसान ने जड़ से मिटा दी हैं, इस तरह कहीं कहीं खुदाई पाबन्द नज़र आने लगी है और बनदई स्वछंद . खुदा और बन्दों का मुकाबला तो मज़हबी शोब्देबाजी है. इन्सान खुदा से लड़ने जैसी मूर्खता नहीं करता बल्कि कुदरती आपदाओं से खुद को बचाता है.
जंगल में हैवानी राज है जो की खुदा की कल्पना से ना वाकिफ है. हैवानों की व्योवस्था हजारों साल से संतुलित अवस्था में है ,जब कि इंसानी समाज खुदा को लेकर हजारों बार इस ज़मीन को तहस नहस कर चुका है. हैवान पैदैशी हैवान होता है जो मरने तक हैवान ही रहता है. इन्सान भी पैदाइशी हैवान है मगर धीरे धीरे बड़ा होकर इन्सान बन्ने लगता है, इस से पहले कि वह मुकम्मल इन्सान बन पाए धर्म और मज़हब इसे अधूरा कर देते है, वोह भी पूरा इन्सान बनाने के नाम पर. गांघी जी एक महान इन्सान थे मगर धर्म का झूट उनकी घुट्टी में बसा था. पीड़ित अछूतों को हरी जन का नाम तो दे सके मगर ब्रम्ह्म जन ना बना सके नतीजतन वह आज ६० साल बाद भी बरहमन के पैरों में पड़े हैं. मदर टरेसा ऊँची हस्ती थीं मगर ईसाइयत हानि कारक पहलू को सींचती हुई.
खुदा, ईश्वर, गोड के समान एक शब्द अरब दुन्या का (इलोही, इलाही, या)अल्लाह है, इस में अल्लाह का मुहम्मद ने इस्लामी करण कर लिया जिस से लफ्ज़ अल्लाह खुदा और ईश्वर या गाड के तत्भव में नहीं रहा. इसका किरदार एक भयानक और डरावनी छवि जैसा हो गया है। शैतान से भी ज्यादह, खबीस,पिशाच या राक्षस जैसी इसकी तस्वीर उभर कर आती है. इतना सख्त कि वजू करने में ज़रा सी एडी की न भीगे तो वहीँ से जहन्नम की आग दौड़ने की आगाही देता है। काफिरों को जहन्नम में इस कद्र जलाता है कि उनकी खालें गल कर बह जाती हैं, फिर उन खालों की जगह दूसरी नई खाल मढ़ कर जलाना शुरू करता है. यह सिलसिला हमेशा हमेशा चलता ही रहता है. इस को इस्लामी ओलिमा अल्लाह की हिकमत कहते हैं और इसी बात को लेकर कुरआन का नाम "कुरान ए हकीम" रक्खा. वह दोज़ख से पूछता रहता है कि तेरा पेट भर कि नहीं? दोज़ख कहती है अभी नहीं. फिर वह इंसानों और जिनों से उसका पेट भरना शुरू कर देता है. दोज़ख के अजाब के अजायब कुरान में देखिए.
दर अस्ल मोहम्मद ने इस्लामी अल्लाह को अपनी फितरत के हिसाब से गढा है और उसका पैकर (ढांचा) बना कर खुद उसमे दाखिल हो गए हैं। लाखैरे, बेहिसे और बेकारों की अक्सरियत पाकर मोहम्मद ने अपनी कामयाबी पर अकेले में दिल खोल कर क़हक़हा लगाया होगा कि मै परवर दिगर बन गया, यह मेरा यकीन है। दुन्या के तमाम ग्रंथों में कलंकित ग्रन्थ कुरआन है और दुन्या की जाहिल तरीन क़ौम इस मुहम्मदी अल्लाह के कायल है. हुवा करें, हमें क्या ? अगर हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. मगर ठहरिए, हमें फर्क पड़ता है, जिस तरह मुहम्मदी अल्लाह दुश्मने इन्सान है, वैसे ही इस के मानने वाले दुश्मने इंसानियत हैं.
इंतज़ार करें "हर्फ़ ए गलत" का सिलसिला जल्द ही शुरू होने वाला है जो की कुरआन की असलियत को मंज़रे आम पर लाएगा और सोई हुई क़ौम को आवाज़ देगा कि इन खबीस आलिमान ए दीन को पहचानो, जो सदाक़त की पर्दा पोशी करके तुमको सदियों से गुमराह किए हुए हैं. मुसलमानों को रहनुमाई की ज़रूरत है, हर bआज़मीर बाज़मीर इन्सान दोस्त से निवेदन है की हमारा साथ दे।

'मोमिन'

3 comments:

  1. खूदा या ईश्वर पर जैन व बौद्ध अवधारणा का जिक्र होता तो जोरदार अवलोकन हो जाता.

    निवेदन है प्रचलन में जो अरबी शब्द नहीं है, उनके साथ हिन्दी के शब्द भी लिखा करें, हम जैसों को समझने में आसानी रहेगी.

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  3. आपके इस वाक्‍य ''स्वयम्भू अंतिम अवतार (जिसके वर्तमान हिंदी कार्य वाहक आप बने हुए हैं)।'' के बारे में मेरा कहना है कि मुहम्‍मद सल्‍ल. स्‍वयं अंतिम अवतार नहीं बने अल्‍लाह ने कहा और बनाया,, अब तो कई हिन्‍दू भाईयों ने ऐतिहासि‍क शोध करके हिन्‍दू, जैन, बौध, ईसाई और यहूदियों का भी उन्‍हीं का अंतिम अवतार साबित कर दिया है, बहुत जल्‍द इसपर मेरा ब्‍लाग अंतिम अवतार पर देखोगे, फिलहाल मेरे ब्‍लाग islaminhindi.blogspto.com से पढिये श्रीवास्‍तव जी की पुस्‍तक 'हजरत मुहम्‍मद और भारतीय धर्मग्रंथ''
    आपके इस वाक्‍य ''ए आर रहमान का इस्लामी दुन्या में बड़ा शोर है,'' के बारे में मेरा कहना है कि आपके पास, आप जैसे लोगों में उनका शौर होगा, जो मेरे चारों तरफ हैं उनमें अक्‍सर नहीं जानते यकीन ना हो तो किसी किन्‍हीं 10 मुसलमानों से पूछ लो लेकिन वह मुसलमान जो दूर से ही पता लग जाता है कि यह मुसलमान है,दुनिया भी जानती है कौन हैं मुसलमान बस अन्‍जान बनी हुई हैं, मुसलमान वह जिसे देखकर पूछना ना पडे कि तुम मुसलमान हो तेरे और मेरे जैसे नहीं, ऐसे लोगों से पूछना फिर बताना कितनों को मालूम है कि कौन है ए आर रहमान, इसकी वजह है उसने इस्‍लाम कबूल किया है अपनाया नहीं, इस्‍लाम में संगीत, नाच गाने, बेहयाई से बचने को कहा गया है, जो इन पर ना चल सका, जिनके आपने नाम गिनाये हैं उनके लिये मेरा कहना है क‍ि वह नाम के मुसलमान हैं मेरे और तुम्‍हारे जैसे,
    आगे से कुरआन पर जो लिखो, उसका नेट पर मौजूद कुरआन के हिन्‍दी अनूवाद से लिखा करो ताकि दूध का दूध पानी पानी हो जाये,
    www.quranhindi.com (जमात इस्‍लामी हिन्‍द की पूरी वेब की pdf book मेरे ब्‍लाग से डाउनलोड कर लो)
    www.aquran.com (शिया भाई की)
    www.altafseer.com (अठारह भाषाओं में अनुवाद उपलब्‍ध, इसके हिन्‍दी अनुवाद को मैंने यूनिकोड कर लिया है जो वेब मित्रों को भेज कर मशवरा कर रहा हॅं कि कैसे इसे नेट पर डाला जाये)
    www.al-shaia.org (ईरान की वेब यूनिकोड में परन्‍तु अभी अधूरा, 70 से आगे की कोई सूरत यहां देख लिया करो)
    मुझे किताबी कीडा बताते हो, अरे मैं तो गुनहगार हूं , मैं भी नाम का मुसलमान हूं बस आप जैसों की इस्‍लाम पर बकवास ने मुझे मजबूर किया कि मैं लिखूं, दूध का दुध और पानी का पानी कर दूंगा, इन्‍शाअल्‍लाह
    अभी भी वक्‍त है पढ लो 'आपकी अमानत आपकी सेवा में' फिर ना कहना हमें कोई रास्‍ता दिखाने वाला नहीं मिला था, जिन को तुम ढपली कहते हो उन अल्‍लाह के चैलंजो पर दौबारा गौर करो, जो विस्‍तारपूर्वक मेरे ब्‍लाग पर हैं
    1- अल्‍लाह का चैलेंज पूरी मानव जाति को (क़ुरआन में 114 नमूने हैं उनमें से किसी एक जैसा अध्‍याय/सूरत बनादो)
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/1-7.html
    2- अल्लाह का चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता।
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/3-7.html
    3- अल्लाह का चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/4-7.html
    4- अल्‍लाह का चैलेंजः कुरआन में विरोधाभास नहीं
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/blog-post.html
    2009
    5- अल्‍लाह का चैलेंजः आसमानी पुस्‍तक केवल चार
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/5-7.html
    2009
    6- खुदाई चैलेंज: यहूदियों (इसराईलियों) को कभी शांति नहीं मिलेगी’’
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/2-7.htm

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