Tuesday, April 28, 2009

शरीयत

bedariyan

आन्तरिक खतरा

कभी नमाज़ न पढने वाले, शराब के शौकीन, यहाँ तक की सुवर माँस से भी परहेज़ न करने वाले, बकौल श्री अडवानी सेकुलर और बएलन पाकिस्तानी अवाम काएदे मिल्लत मोहम्मद अली जिन्ना के सपनो का पाकिस्तान तालिबानों के हाथों में तालिबानिस्तान बनने जा रहा है. ये इस्लामी इतिहास का एक भयावह द्वार मानव समाज के लिए खुलेगा, जिसकी कल्पना भी अभी करना ठीक नहीं लगता। पाकिस्तान में सदियों पुराना वहशियाना क़ानून शरीयत लागू होगा जो उस वक़्त भी जाहराना और जाबिराना था जब अनपढ़ मुहम्मद ने इस को तथा-कथित ईश वाणी कुरआन का फरमान बता कर लागू किया था, आज तो मानव मूल्य बहुत संवेदन शील हो चुके है. पाकिस्तानी अवाम फिर पीछे की तरफ माज़ी बईद में कूच करेंगे, वैसे भी वहां ज़ेह्नी पस्मान्दगी तो थी ही अब उन पर और भी कज़ा दूनी हो जाएगी. हर गाँव, हर क़स्बे, हर ज़िले और हर शहर में लम्बी लम्बी दाढ़ी वाले छोटे छोटे मोहम्मद रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम तलवार से लेकर तोप तक लिए बैठे मोहम्मदी सियासत और रसूली जेहालत का फायदा उठा रहे होंगे.
इंसानी हमदर्दी के आलावा पाकिस्तान में मेरी कोई दिल चस्पी नहीं है. "शेख अपनी देख" हम कौन से राम राज में रह रहे हैं? पाकिस्तान जम्हूरियत से इस्लामी मुल्क बन्ने जा रहा है वोह भी तालिबानी, जिसका मतलब है हमारे पडोसी की दुरदशा. तालिबानी आत्माओं का मकसदे हयात है, कुरआन की उन ज़हरीली आयातों को जीना जो जेहाद से परिपूर्ण हैं, उनके लिए मानव जीवन की कोई कीमत नहीं, चाहे वह कोई भी हों, बूढे, बच्चे, औरत, मर्द, मुस्लिम, काफ़िर या कोई जीव, उनको अपना स्वार्थ प्यारा है कि शहीद होने के बाद सीधे हूरों और शराब की नहरों से भरी जन्नत में जाना. इस अटल विश्वास के आगे मानव संवेदना का क्या मूल्य है? सवाल उठता है कि पाकिस्तान में आई हुई इस इस्लामी पस्ती के लिए हम कहाँ तक ज़िम्मेदार हैं? हमारे भविष्य में क्या लिखा है ? जी हाँ, हम सो रहे हैं जम्हूरी चादर ओढ़ के और अपने घर के बच्चों को जम्हूरी छूट दिए हुए हैं कि बेटे जाओ तुम भी तालिबानी कुरआन की आयतें पढो, बड़े होकर जेहादी बनना.
कोई मेरे सवाल का जवाब देगा कि तालिबानी कुरआन और हमारे यहाँ मदरसों में पढाई जाने वाली कुरआन में क्या फ़र्क है? यह इब्नुल वक़्त टके पर ईमान बेचने वाले सब के सब इस्लामी आलिम हिन्दुस्तानी अवाम के सामने जेहाद के नए नए माने गढ़ रहे हैं, जेहाद को जद ओ जेहद के शब्द जाल में लपेटे हैं. कुरआन एक बार नहीं बार बार कहता है, अल्लाह के नाम पर क़त्ताल करो. बच गए तो माल ओ मता पाओगे, शहीद हो गए तो हमेशा के लिए जन्नत की ज़िन्दगी होगी जहाँ शराब, जवान हूरें, गिल्मान और फलों से लदी हुई डालियाँ होंगी, हीरे जवाहरात के महल होंगे. दर अस्ल जेहाद का मकसद है दर पर्दा इसलाम का विस्तार, (पहले था अरब को मज़बूत करना और अरबियों खास कर कुरैश की आर्थिक मदद ) इसके केंद्र को मज़बूत करना, इसके मानने वालों को जेहालत के अँधेरे में रखना. अब ऐसा नज़रिया रखने वाली इतनी बड़ी आबादी इस्लामी असर में रह कर हमारे साथ साथ रहती है तो यह एक चिंता का विषय ज़रूर है.
क़ुरआन एक खतरनाक अंध विश्वास है तो इस पर अंकुश लगे, इस बात से विरोधी तालियाँ न बजाएँ, इस पर अंकुश लगाने से पहले उनको अपने गरेबान में मुँह डाल कर झाँकना पड़ेगा। भारत में बहु संख्यक को पहले समझदार होना पड़ेगा. भारत के अल्प संख्यक को अगर अंध विश्ववास की पुडिया पिला रहा है तो भारत के बहु संख्यक को हिंदुत्व महा अंध विश्वास की गोली खिला रहा. दोनों एक दुसरे के पूरक और सहायक हैं. धार्मिक और मज़हबी अंध विश्वास ही हमारे देश का दुरभाग्य है.

'मोमिन'

3 comments:

  1. अपने गरेबान में मुँह डाल कर झाँकना पड़ेगा।

    मुआफ करना गिरबान में झाँकते है तभी यहाँ लोकतंत्र है, सबको समान अधिकार है. हिन्दुओं के कई सुधार आन्दोलन हुए है. आप अपनी बात करें, दुसरों को गरियाने से क्या होगा?

    भाषा में अरबी शब्द कम होंगे तो ज्यादा लोग समझ पाएंगे.

    आपका प्रयास अच्छा है, शुभकामनाएं.

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  2. मोमिन भाई, तालियाँ बजानें जैसी कोई बात नहीं है। सच तो यह है कि हम यह जानते और मानते है कि ज्यादातर मुस्लिम भी कल तक हमारा ही खून थे। हालातों और खा़स कर राजनीतिक चालबाजी नें न केवल आपस की दूरी बढ़ाई है बल्कि मज़हब का भी राजनीतिक इस्तेमाल कर हम बिरादरों को जहाँ पहुँचा दिया है वह दोंनो के लिए समान रूप से चिन्ताजनक है।

    जहाँ तक गिरहबाँ में झाँकनें की बात है समय समय पर यह काम होता रहा है और आगे भी होता रहेगा। आगे कभी आप सिलसिलेवार इस पर बात करेंगे तो ठीक रहेगा। अभी तो जिधर आपकी तवज्जोह है वही तसकिरा ज्यादा ज़रूरी है। यह जानते हुए भी कि शायद ही किसी पर इसका माकू़ल असर हो।

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  3. मोमिन भाई, आप कहना क्या चाहते हैं मैं समझ नहीं पाया मैंने आपकी सारी पोस्ट पढ़ी, हर पोस्ट में आपने अल्लाह, रसूल, और कुरान को भला बुरा कहा है आपको क्या लग्ता है कि आप हमारे धरम को गाली देन्गे और हम लोग चुप्चाप सुन लेन्गे, अगर आपको इस बिरादरी को बदल्ना है तो पहले आप अपने आप को और अपनी भाषा को बदलिए क्यूंकि यहाँ पर गाली के बदले गाली ही मिलती है वो दौर गया जब बापू ने कहा था की कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो....यहाँ अगर किसी के एक थप्पड़ पड़ेगा तो वो जवाब में पांच मारेगा और फिर पूछेगा की क्योँ मारा था....और रही बात कुरान और हदीस की तो आप पहले अपना लिखने और बोलने का लहजा बदल ले फिर उस पर बहस हम बाद में करेंगे....और बेह्तर यही होगा की आप अपने अस्ली नाम का इस्तेमाल करें, क्यौन्कि यह मस्ला कुछ सन्गीन है इसलिये दो लोग आमने सामने आकर बात करे तो बेह्तर होगा मुझे पता तो लगे कि मै किस शख्स से बात कर रहा हू....

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