Monday, April 27, 2009

क़ुरआनी हक़ीक़त

अलबेदार

बदरियाँ -(६)

दुन्या के तमाम मुसलमानों के साथ बड़ा अलमिया(विडंबना) ये है कि उन का धार्मिक ग्रन्थ यानी कुरआन, उनकी अपनी भाषा में नहीं है, सिवाए अरब के जो हमेशा से कुरआन का आर्थिक लाभ भर ले रहे हैं. बाकी गैर अरब इसलामी दुन्या इस स्वयम सज्जित ग्रन्थ को सर पे उठाए हुए महत्त्व पूर्ण किए हुए है. उपमहाद्वीप का एक मुस्लिम वर्ग तो उन अरबों को इस्लामी दृष्टि कोण से मुसलमान ही नहीं मानता, उन्हें वहाबी कहता है. मुस्लमान विद्यार्थियों को अरबी के नाम पर मदरसों में कुरआन पढाया जाता है, जो की कुरआन के पढने तक महदूद रहता है, न तो विद्यार्थी इसकी भाषा को समझ सकता है, न लिख सकता है और न ही बोल सकता है. आश्चर्य जनक है कि लाखों इसके कंठस्त हफिज़े कुरआन हर रोज़ कुरआन को दोहराते हैं और इस में इन की उम्रें बीत जाती हैं मगर वह नहीं जानते कि वह रोज़ कुरआन में क्या पढ़ते हैं? वोह ये तो जानते हैं कि ये अल्लाह का कलाम है यानी ईश वाणी है मगर ये नहीं जानते कि अल्लाह रोज़ उन से क्या कहता है? वह केवल इतना जानते हैं कि कुरआन ईश वाणी है और इस के पाठ करने में पुन्य है. अल्लाह ने क्या कहा, ये इसका चतुर गुरु जाने. कुरआन मुकम्मल निजाम हयात (जीवन विधान) है, मुल्ला के मुँह से सुनी ये बात आम मुस्लमान के मुँह पर रखी रहती है. मैं ने कईयों को दावत दी कि कभी कुरआन ला कर मुझे भी दिखलाएं कि कहाँ छिपी हुई हैं निज़ाम हयात? तो वोह बगलें झाँकने लगे, कई दोस्त कुरआन लेके बैठे भी मगर क्या खाक पाते कुरआन में कुछ ऐसा है ही नहीं. अल्लाह की बातें तो इन्हें समझ में न आईं मगर तर्जुमान की पच्चर से कसी गई चूलें इन्हें मना लेतीं अन चाही बातों के लिए. चूँ कि कुरआन को लोग सर्वांग आस्था बन कर पढ़ते है और इस पर ज़बान खोलने का साहस नहीं करते, वजेह ये कि दोज़ख की धमकी साथ साथ चलती रहती है और मानने वालों को जन्नत की लालच भी, तो कौन रिज्क ले. सच पूछिए तो क़ुरआन को किसी सिंफे सुखन (विधा) का नाम दिया ही नहीं जा सकता. ये एक फूहड़ तुकांत वाली शायरी है. कलाम में रवानी (प्रवाह)और फ़साहत (सुभाष्यता) लाने के लिए अर्थ का अनर्थ हो गया है. बातें आधी अधूरी रह गई हैं जो कि पढने वालों को बुरी तरह खटकती हैं और जिसे अनुवादक और ब्याख्या कार अपनी बैसाखी लगाए रहते हैं. कहीं कहीं क़ुरआन कि बातें ऐसी लगती हैं जैसे बातें सिर्फ बात करने के लिए की जा रही हो, जैसे कि किसी पागल कि बड. मुझे यकीन है कोई भी औसत दर्जे का ज़ेहन रखने वाला एक मुसलमान क़ुरआन का बुनयादी अनुवाद पढे तो ख़त्म होने से पहले ही बेज़ारी का शिकार हो जाएगा. कहा जाता है क़ुरआन अल्लाह का कलाम है यानी अल्लाह के मुँह से निकली हुई बात मगर क़ुरआन में अल्लाह कभी अपने मुँह से बोलता है तो कभी मुहम्मद उसके मुँह से बोलने लगते हैं और कभी एक अदना सा बन्दा बन कर अल्लाह खुद अल्लाह के आगे गिडगिडाने लगता है. कलाम के ये तीन अंदाज़ काफ़ी हैं कि क़ुरआन किसी आसमानी ताक़त का कलाम नहीं है. आलिमान क़ुरआन बतलाते हैं कि यह अल्लाह का अंदाजे बयान है जो कि उनकी बे शर्मी ही कही जा सकती है. इनकी बात मान लेना आज समाजी मजबूरी नहीं रह गई. बल्कि समाज के तईं ये गैर ज़िम्मेदाराना बात है.
"ला इलाहा इल्लिल्लाह मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह" अर्थात "अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं है और मोहम्मद उसके दूत हैं।"किसी गैर मुस्लिम को इसलाम कुबूल करने के लिए नहा धो कर प्रस्तुत कलिमा पढ़ लेना ही काफी होता है। इसके अंतर गत एक जन साधारण को इसलाम का गुलाम बना लिया जाता है. इस के तहेत नव मुस्लिम को मुल्ला की हर सही और गलत बात मानने के बाध्य हो जाना पड़ता है जिस को मुहम्मद ने क़ुरआन में अल्लाह के मुँह से कहा है. उस अल्लाह का अस्तित्व तो कहीं है ही नहीं जिस की कल्पना मुहम्मद ने की है. दर असल परदे के पीछे मुहम्मद खुद वह अल्लाह हैं जिसको कि उन्हों ने बन्दों के लिए गढा है. किताब के ख़त्म होते होते यह बात खुद बखुद करी (पाठक) के समझ में आ जाएगी. मुहम्मद का अल्लाह जो कि मुसलमानों के सिवा बाकी सारी कौमों के लिए आग की भट्टियाँ दहकता है, ठीक ऐसा ही अल्लाह यहूदियों का इलोही (जहूवा) भी है बल्कि इस भी सख्त. मुहम्मद ने यहूदियों के नबी मूसा का पूरा पूरा अनुसरण किया है. मूसा ज़ालिम तरीन रहनुमा था. मुहम्मद और मूसा में अंतर सिर्फ इतना है कि मूसा मुहम्मद की तरह निरक्षर नहीं था, तौरेत का ज़्यादा हिस्सा की रची हुई है जिस में एक सलीका है। क़ुरआन में बे सिर पैर की बकवास है, इसी लिए इसकी तिलावत (पाठ) करना अव्वालियत में क़रार दे दिया गया है, अवाम को समझना है तो किसी मौलाना के माध्यम से ही समझे. जो की पक्के चाल बाज़ होते हैं.
मोमिन

10 comments:

  1. आप की बातें बड़ी सटीक हैं। कितनी ग्राह्य और सुपाच्य होती हैं ये तो वक़्त ही बताएगा। फ़िलहाल आप जो भी हैं, आप धन्य हैं। मैं आप को इस बीहड़ काम को करने के लिए बधाई और शुभकामनाएं दोनों देता हूँ।

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  2. आप को बहुत बहुत बधाई! इस काम के लिए बहुत हिम्मत की जरूरत थी। शुक्र है किसी में तो वह दिखाई दी। किसी भी कौम को उस के भीतर की आत्मालोचना से ही उच्चता के शिखर पर ले जाया जा सकता है।

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  3. i think u r just misleading people with ur rubiish .if u have courage then i challenge u ,come and have a dialouge with me on quran and hadees and almighy allah.i think u r not a muslim and u r a kafir ..but may aalah forgive u ...islam has produce so many great saint like nizamuddin aulia,moinduddin chsti,khawaja bakhtiyar kaki ,salim chisti...the list is endless and people go to their Mazaar for fullfillment of their problem.if islam is not true that how it produced persons like these freat saint ...think about it and if want to talk to me on this just sent me reply here ...
    allah maaf kare tumhain

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  4. @ Shaquib Khan- "i think u r not a muslim and u r a kafir...

    जो मुस्लिम नहीं है वह काफिर है यानि विधर्मी। काफ़ीर होने की सजा क्या है आपके इस्लाम में? मौत? यही तो आप सिखा रहे हैं अपने तालिबों को? मोमिन का प्रयास मुस्लिम समाज को डेढ़ हजार साल पहले की अन्धेरी सुरंग से बाहर लाकर उन्हें आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति और सभ्यता के विकास की उस सीढ़ी पर खड़ा करने की है जिसपर दुनिया के बाकी लोग खड़े हैं।

    मूढ़ बनकर अपनी जगह पर अड़े रहना और विकास की ओर एक कदम भी आगे न बढ़ाना कहाँ की होशियारी है? आपने तालिबानियों की कहीं आलोचना की हो तो जरूर बताइएगा। यदि नहीं की है तो आप अपने बारे में बताइए कि तालिबानी सोच से आप कितने प्रभावित हैं?

    मोमिन को इस नेक काम के लिए बधाई और अफलता हेतु शुभकामनाएं।

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  5. मोमिन को इस नेक काम के लिए बधाई और सफलता हेतु शुभकामनाएं।

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  6. मोमिन साहब, हमने कुरान तो कभी पढ़ी नही अत: आप जो कह रहे है वह सही है या नही कुछ नही कह सकते। लेकिन एक बात की बधाई जरूर देते हैं आपको, जो आप इतना बेबाकी से कुरआन की जानकारी दे रहे हैं।

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  7. मोमिन भाई, इस ब्‍लॉग और आपका स्‍वागत है। बड़ा सही काम हाथ में लिया है। मुझे लगता है अगर इन बातों को आम लोगों के समझ में आने वाली भाषा में लिखेंगे तो इनका असर दूर तक और गहरा होगा। इस अच्‍छे काम में मुझे अपने साथ समझिए।

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  8. मोमिन भाई, आप जो भी हैं बहुत सही वक्त पर आपनें सच को सामनें लानें की शुरुआत की है। हिम्मत और वाज़िब न्याय के साथ आप अपनीं बात रख पायें इसके लिए मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ।

    शाकिबखाँ भाई क्या क्या सुन्नी मसलहत के लिहाज़ से मज़ार की इबादत ज़ाइज़ है? जिन बुजुर्गों का आपनें नाम लिया उन के आस्तानें पर जो मज़लूम/ज़रूरतमंद जाते हैं उनको उस न दिखनें वाले खुदा से ज्यादा उन हज़रात के मक़बरों पर अकीदा है जो उनकी मुराद पूरी करते है, क्यों? क्या ये सारे बुज़ुर्ग जिस फलसफ़े पर अकीदा रखते थे, उसे आप जानते और पूरी तरह से माननें को तैयार हैं? सू़फियाना सिलसिला क्या हज़रत मोहम्मद साहब के पहले से नहीं चला आरहा है? ‘दीन’ और ‘ईमान’ के वाज़िब मानी क्या आप जानते हैं? ‘खुदा’ पर ईमान लाना आयद है या ‘इस्लाम’ पर?

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  9. आपके इस वाक्‍य ''स्वयम्भू अंतिम अवतार (जिसके वर्तमान हिंदी कार्य वाहक आप बने हुए हैं)।'' के बारे में मेरा कहना है कि मुहम्‍मद सल्‍ल. स्‍वयं अंतिम अवतार नहीं बने अल्‍लाह ने कहा और बनाया,, अब तो कई हिन्‍दू भाईयों ने ऐतिहासि‍क शोध करके हिन्‍दू, जैन, बौध, ईसाई और यहूदियों का भी उन्‍हीं का अंतिम अवतार साबित कर दिया है, बहुत जल्‍द इसपर मेरा ब्‍लाग अंतिम अवतार पर देखोगे, फिलहाल मेरे ब्‍लाग islaminhindi.blogspto.com से पढिये श्रीवास्‍तव जी की पुस्‍तक 'हजरत मुहम्‍मद और भारतीय धर्मग्रंथ''
    आपके इस वाक्‍य ''ए आर रहमान का इस्लामी दुन्या में बड़ा शोर है,'' के बारे में मेरा कहना है कि आपके पास, आप जैसे लोगों में उनका शौर होगा, जो मेरे चारों तरफ हैं उनमें अक्‍सर नहीं जानते यकीन ना हो तो किसी किन्‍हीं 10 मुसलमानों से पूछ लो लेकिन वह मुसलमान जो दूर से ही पता लग जाता है कि यह मुसलमान है,दुनिया भी जानती है कौन हैं मुसलमान बस अन्‍जान बनी हुई हैं, मुसलमान वह जिसे देखकर पूछना ना पडे कि तुम मुसलमान हो तेरे और मेरे जैसे नहीं, ऐसे लोगों से पूछना फिर बताना कितनों को मालूम है कि कौन है ए आर रहमान, इसकी वजह है उसने इस्‍लाम कबूल किया है अपनाया नहीं, इस्‍लाम में संगीत, नाच गाने, बेहयाई से बचने को कहा गया है, जो इन पर ना चल सका, जिनके आपने नाम गिनाये हैं उनके लिये मेरा कहना है क‍ि वह नाम के मुसलमान हैं मेरे और तुम्‍हारे जैसे,
    आगे से कुरआन पर जो लिखो, उसका नेट पर मौजूद कुरआन के हिन्‍दी अनूवाद से लिखा करो ताकि दूध का दूध पानी पानी हो जाये,
    www.quranhindi.com (जमात इस्‍लामी हिन्‍द की पूरी वेब की pdf book मेरे ब्‍लाग से डाउनलोड कर लो)
    www.aquran.com (शिया भाई की)
    www.altafseer.com (अठारह भाषाओं में अनुवाद उपलब्‍ध, इसके हिन्‍दी अनुवाद को मैंने यूनिकोड कर लिया है जो वेब मित्रों को भेज कर मशवरा कर रहा हॅं कि कैसे इसे नेट पर डाला जाये)
    www.al-shaia.org (ईरान की वेब यूनिकोड में परन्‍तु अभी अधूरा, 70 से आगे की कोई सूरत यहां देख लिया करो)
    मुझे किताबी कीडा बताते हो, अरे मैं तो गुनहगार हूं , मैं भी नाम का मुसलमान हूं बस आप जैसों की इस्‍लाम पर बकवास ने मुझे मजबूर किया कि मैं लिखूं, दूध का दुध और पानी का पानी कर दूंगा, इन्‍शाअल्‍लाह
    अभी भी वक्‍त है पढ लो 'आपकी अमानत आपकी सेवा में' फिर ना कहना हमें कोई रास्‍ता दिखाने वाला नहीं मिला था, जिन को तुम ढपली कहते हो उन अल्‍लाह के चैलंजो पर दौबारा गौर करो, जो विस्‍तारपूर्वक मेरे ब्‍लाग पर हैं
    1- अल्‍लाह का चैलेंज पूरी मानव जाति को (क़ुरआन में 114 नमूने हैं उनमें से किसी एक जैसा अध्‍याय/सूरत बनादो)
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/1-7.html
    2- अल्लाह का चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता।
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/3-7.html
    3- अल्लाह का चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/4-7.html
    4- अल्‍लाह का चैलेंजः कुरआन में विरोधाभास नहीं
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/blog-post.html
    2009
    5- अल्‍लाह का चैलेंजः आसमानी पुस्‍तक केवल चार
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/5-7.html
    2009
    6- खुदाई चैलेंज: यहूदियों (इसराईलियों) को कभी शांति नहीं मिलेगी’’
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/2-7.htm

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