Saturday, April 25, 2009

दोबारा निवेदन है - - -

बेदारियाँ -( १)

शुरू करता हूँ बइस्म् ए सिद्क़ और ईमान के साथ- - -


मुसलामानों! जागो तुम आज कुछ ज़्यादह ही अपने दुश्मनों से घिरे हुए हो, वैसे तुम तो हमेशा से ही खतरों से घिरे रहते हो। जब तुम पर कोई खतरा लाहक़ होता है तो उल्टे तुम्हारे मज़हबी रहनुमा तुमको ही दोष देते हैं कि तुम दीन से हटते जा रहे हो और तुम को तुम्हारा माज़ी याद दिलाते हैं जब तुम हुक्मरान हुवा करते थे. हालाँकि तुम मुस्लिम अवाम हमेशा दीन दार रहे हो और आज सब से बेहतर मुस्लमान हो. फिर भी वह तुम को पहला हल बतलाते है कि नहा धो कर सब से पहले तुम तौबा करके नए सिरे से फिर से मुस्लमान बन जाओ और हो जाओ पंज वक्ता नमाजों के पाबन्द, उनका कहना मानो। दर अस्ल यही मुसलमानों के साथ कौमी हादसा है. मुस्लमान बेदार होने की दर पे होता है कि ये दीनदार उसे नींद की गोलियां एक बार फिर से देकर सुला देते हैं. क़ौम को सही मानों में बेदार होना है, इस के लिए क़ौम को बहुत बडी जेसारत करनी होगी. इसलाम को नए सिरे से समझना होगा, कुरआन की गहराइयों में जाना होगा जहाँ खौफ नाक नफ़ी के पहलू पोशीदा हैं, जिसे हर आलिम जनता है, नहीं जानती तो मुस्लिम अवाम। जिसे हर हिदू विद्वान् (अमानवीय मूल्यों का कपटी ज्ञान धारक) जनता है मगर चाहता है कि मुसलमान इस अंध विश्वास और आपसी कलह में हमेशा मुब्तिला रहे ताकि ये "पिछड़ा वर्ग विशेष" कहलाए. ओलिमा अगर क़ुरआनी हकीक़त मुसलमानों पर ज़ाहिर कर दें तो वोह गोया खुद कशी कर लें. "अलबेदार" ने बीडा उठाया है कि ईमानदारी के साथ मुसलमानों को जगाएगा और थोडी सी तब्दीली की राय देगा कि तुम " मुस्लिम से मोमिन हो जाओ" इसलाम को तस्लीम किया है जिसके पाबन्द हो. इस पाबन्दी को ख़त्म करदो और ईमान को कुबूल कर लो जो कि इन्सान का अस्ल और इन्सान का दीन है, जैसे धर्म कांटे का असली और फितरी दीन है उसकी सही तौल, फूल का असली और फितरी दीन है महक, और इन्सान का असली और फितरी दीन है इंसानियत। बस ये ज़रा सी तब्दीली धीरे से दिल की गहराई में जाकर तस्लीम कर लो फिर देखो कि तुम क्या से किया हो गए. तुम्हें अपनी तहज़ीब ओ तमद्दुन, अपना कल्चर अपनी ज़बान, अपना लिबास, अपना रख रखाव और तौर तरीका कुछ भी नहीं बदलना है, बदलना है तो सिर्फ सोच और वह भी बहुत शिद्दत के साथ कि बड़े ही नाज़ुक दौर से मुस्लमान कही जाने वाली क़ौम तबाही के दहाने पर है. अपने बच्चों को जदीद तालीम दो, दीनी तालीम और तरबीयत से दूर रक्खें. मौलानाओं, आलिमों, मोलवियों के साए से बचाएँ, क्यूंकि यही हमेशा से मुसलमानों के पस्मान्दगी के बाईस रहे है।

'मोमिन'

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